नागपुर, 7 मई। भारत हमारी माँ है और हम उसके पुत्र। हम अपनी मातृभूमि के लिए आवश्यक हर पराक्रम करेंगे। भारत के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और विज्ञान का अध्ययन करेंगे, ऐसा संकल्प लेकर 107 शिविरार्थी अपने-अपने घर लौट गए। यह संकल्प इन छात्रों के शैक्षिक जीवन को संवारेगा, ऐसा विश्वास शिविरार्थियों तथा उनके अभिभावकों ने व्यक्त किया। ज्ञात हो कि विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी, शाखा नागपुर की ओर से नागपुर से 12 किमी पर स्थित भारतीय उत्कर्ष मंडल के सुरम्य परिसर में 30 अप्रैल से 4 मई, 2014 की अवधि में विद्यालयीन छात्र-छात्राओं का आवासीय व्यक्तित्व विकास शिविर संम्पन्न हुआ। इस शिविर का थीम था- ‘भारत का सामर्थ्य’ और शिविर गीत था-‘यह अपनी भारत माता, सम्पूर्ण विश्व की माता।’ इस शिविर में 48 छात्राएं और 59 छात्र ऐसे कुल 107 शिविरार्थियों ने भाग लिया।
इस चार दिवसीय निवासी शिविर में पुण्यभूमि भारत और उसके पुण्य व्यक्तित्व ‘स्वामी विवेकानन्द’, वीरभूमि भारत और उसके वीर पुत्र ‘शिवाजी महाराज’, समर्थ भारत और उसकी प्रेरणा ‘डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम’ तथा विश्वगुरु भारत के लिए व्यवहार में राष्ट्रभक्ति ‘संस्कार वर्ग’ ऐसे चार बौद्धिक सत्र हुए। छात्रों के मेधाशक्ति के विकास के लिए प्रतिदिन ‘मंथन’ नामक समूह चर्चा का सत्र रखा गया, जिसमें व्यक्तित्व विकास कैसे हो, वीर बनना यानी क्या, हमारी भारतमाता तथा संस्कार वर्ग क्यों और कैसे, इन विषयों शिविरार्थियों ने विमर्श किया।
सृजन सत्र में शिविरार्थियों ने सिरामिक की कलाकृति, हस्तकला और अभिनय कला का प्रशिक्षण लिया। शिविरार्थियों के शारीरिक विकास हेतु जहां प्रतिदिन योगाभ्यास, श्रम संस्कार और विविध प्रकार के मैदानी और इनडोर खेल खेलाए गए, वहीं भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास के लिए बच्चों ने विविध स्तोत्र, भजन आदि के साथ ही देशभक्ति पर अनेक गीत भी सीखे।
रात्रिकालीन सत्र में ‘प्रेरणा से पुनरूत्थान’ के अंतर्गत विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक श्री एकनाथ रानडे के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों से कहानी के माध्यम से शिविरार्थियों ने प्रेरणा ली। इस सत्र में कृति गीत, प्रेरणादायी वीडियो क्लिप के साथ ही हनुमान चालिसा का नियमित पठन किया गया।
इस शिविर का समापन समारोह 4 मई को उत्कर्ष विद्या मंदिर के विशाल प्रांगण में सम्पन्न हुआ। शिविर के समापन में शिविरार्थियों ने विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। बच्चों ने अपने अनुभव कथन में शिविर के दौरान प्राप्त अनुभव, जैसे संगठित होकर कार्य करना, अनुशासन, आज्ञापालन, राष्ट्रभक्ति, सृजनशीलता तथा संभाषण कला आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्राध्यापक डॉ. राम वाघ ने अभिभावओं को संबोधित किया। उन्होंने अपने उदबोधन में कहा कि बच्चे समाज की अनमोल सम्पत्ति है। इसलिए बच्चों का पोषण हमें बहुत ही जागरूकता पूर्वक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों को अभिभावक ही गढ़ते हैं, इसलिए उसकी हर अच्छी-बुरी आदतों के लिए अभिभावकों को ही जिम्मेदारी लेनी चाहिए। बच्चे अनुकरण से सिखाते हैं, इसलिए अपने घर पर हम जितना अच्छा वातावरण बनाएंगे, बच्चों पर उसका सकारात्मक असर होगा। प्राध्यापक वाघ ने जोर देते हुए कहा कि यदि आदतें बुरी हो तो क्षमता होने पर भी सफलता नहीं मिलती। इसलिए अच्छी आदतें बच्चों को लगाएं, जिससे कि उनका विकास हो सके। समापन कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिविरार्थियों के अभिभावक और साथी उपस्थित थे।
इस चार दिवसीय निवासी शिविर में पुण्यभूमि भारत और उसके पुण्य व्यक्तित्व ‘स्वामी विवेकानन्द’, वीरभूमि भारत और उसके वीर पुत्र ‘शिवाजी महाराज’, समर्थ भारत और उसकी प्रेरणा ‘डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम’ तथा विश्वगुरु भारत के लिए व्यवहार में राष्ट्रभक्ति ‘संस्कार वर्ग’ ऐसे चार बौद्धिक सत्र हुए। छात्रों के मेधाशक्ति के विकास के लिए प्रतिदिन ‘मंथन’ नामक समूह चर्चा का सत्र रखा गया, जिसमें व्यक्तित्व विकास कैसे हो, वीर बनना यानी क्या, हमारी भारतमाता तथा संस्कार वर्ग क्यों और कैसे, इन विषयों शिविरार्थियों ने विमर्श किया।
सृजन सत्र में शिविरार्थियों ने सिरामिक की कलाकृति, हस्तकला और अभिनय कला का प्रशिक्षण लिया। शिविरार्थियों के शारीरिक विकास हेतु जहां प्रतिदिन योगाभ्यास, श्रम संस्कार और विविध प्रकार के मैदानी और इनडोर खेल खेलाए गए, वहीं भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास के लिए बच्चों ने विविध स्तोत्र, भजन आदि के साथ ही देशभक्ति पर अनेक गीत भी सीखे।
रात्रिकालीन सत्र में ‘प्रेरणा से पुनरूत्थान’ के अंतर्गत विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक श्री एकनाथ रानडे के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों से कहानी के माध्यम से शिविरार्थियों ने प्रेरणा ली। इस सत्र में कृति गीत, प्रेरणादायी वीडियो क्लिप के साथ ही हनुमान चालिसा का नियमित पठन किया गया।
इस शिविर का समापन समारोह 4 मई को उत्कर्ष विद्या मंदिर के विशाल प्रांगण में सम्पन्न हुआ। शिविर के समापन में शिविरार्थियों ने विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। बच्चों ने अपने अनुभव कथन में शिविर के दौरान प्राप्त अनुभव, जैसे संगठित होकर कार्य करना, अनुशासन, आज्ञापालन, राष्ट्रभक्ति, सृजनशीलता तथा संभाषण कला आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्राध्यापक डॉ. राम वाघ ने अभिभावओं को संबोधित किया। उन्होंने अपने उदबोधन में कहा कि बच्चे समाज की अनमोल सम्पत्ति है। इसलिए बच्चों का पोषण हमें बहुत ही जागरूकता पूर्वक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों को अभिभावक ही गढ़ते हैं, इसलिए उसकी हर अच्छी-बुरी आदतों के लिए अभिभावकों को ही जिम्मेदारी लेनी चाहिए। बच्चे अनुकरण से सिखाते हैं, इसलिए अपने घर पर हम जितना अच्छा वातावरण बनाएंगे, बच्चों पर उसका सकारात्मक असर होगा। प्राध्यापक वाघ ने जोर देते हुए कहा कि यदि आदतें बुरी हो तो क्षमता होने पर भी सफलता नहीं मिलती। इसलिए अच्छी आदतें बच्चों को लगाएं, जिससे कि उनका विकास हो सके। समापन कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिविरार्थियों के अभिभावक और साथी उपस्थित थे।
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