इस कार्यक्रम में लगभग 115 लोगों ने भाग लिया. कार्यक्रम की शुरुआत तीन ओंकार व प्रार्थना के साथ श्री विवेक शर्मा द्वारा की गई. श्री तिलक शर्मा ने कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं के परिचय सहित इसमें शामिल सभी सदस्यों व गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया. इसके साथ साथ स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस के औचित्य व महत्त्व को भी उजागर किया. इसके पश्चात डॉ. ठाकुर सेन द्वारा भजन प्रस्तुत किया गया. कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता श्री मानस भट्टाचार्य जी व श्री राकेश प्रजापति जी ने स्वामी जी के विचारों व योगदान पर प्रकाश डालते हुए अपने अपने वक्तव्य रखे.
इस आयोजन से पूर्व विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की शाखा कांगड़ा, द्वारा एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन दो स्तरों (Senior व Junior)पर किया गया था. जिसके अंतर्गत जिला कांगड़ा व जिला मंडी के कई विद्यार्थियों ने भाग लिया. विद्यार्थियों ने स्वामी जी के जीवन और शिक्षाओं पर अपनी प्रस्तुतियां विडियो के माध्यम से भेजी थीं. जिनका परिणाम इस प्रकार है.
इस अवसर पर दोनों ही स्तरों पर भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों आर्ची शर्मा, कक्षा 3, माउन्ट कार्मल स्कूल बैजनाथ, जिला कांगड़ा व शालू देवी, बी. ए. तृतीय वर्ष, राजकीय महाविद्यालय लड भड़ोल, जिला मंडी ने कार्यक्रम के दौरान स्वामी जी के जीवन और शिक्षाओं पर लाइव प्रस्तुतियाँ दी.
कार्यक्रम के अन्त में डॉ. नवीन शर्मा ने कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं श्री राकेश प्रजापति जी डेप्युटी कमिश्नर (D.C.) कांगड़ा, तथा श्री मानस भट्टाचार्य जी, जीवन व्रती कार्यकर्ता व उत्तर प्रांत संगठक, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, श्री अशोक रैना जी, उत्तर प्रांत संचालक, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, डॉ. अनिल चौहान, डॉ. भानु अवस्थी, डॉ. अशोक शर्मा सहित सभी गणमान्य व्यक्तियों का कार्यक्रम में शामिल होने व सहयोग के लिए धन्यवाद दिया. कार्यक्रम का समापन श्री विवेक शर्मा द्वारा केंद्र प्रार्थना की प्रस्तुति के साथ किया गया.
मुख्य वक्ताओं (श्री राकेश प्रजापति जी तथा श्री मानस भट्टाचार्य जी) के वक्तव्यों के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. एक बेहतर सामाजिक व्यवस्था के लिए ‘व्यक्तिगत त्याग’ और ‘संगठन’ की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है.
2. हमें अपने ‘स्वाभिमान’ को बढ़ाने और ‘अहंकार’ को कम करने की आवश्यकता है.
3. हमारे देश में ‘गोत्र’ को महत्वपूर्ण माना गया है और उसका ‘स्रोत – ऋषि’ रहे हैं. जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय परंपरा में ‘ज्ञान व शिक्षा’ को ज्यादा महत्व दिया गया है.
4. समाज के प्रति हमारी ‘जिम्मेदारी और भूमिका’ से ही समाज, देश और संपूर्ण जगत को बेहतर बनाया जा सकता है.
5. एक युवा की सबसे प्रमुख पहचान उसकी ‘जिज्ञासा (प्रश्न पूछने) की क्षमता’ है.
6. एक मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ा लक्ष्य ‘मोक्ष’ माना गया है. स्वामी विवेकानंद ने उसे त्याग कर कर्मयोग व सेवा को प्राथमिकता दी, जोकि अपने आप में उनकी महानता को दर्शाता है.
7. स्वामी जी की कुशाग्र बुद्धि का जीवन की कई घटनाओं के दौरान उनकी प्रतिक्रियाओं से पता चलता है. एक बार एक मिशनरी ने स्वामीजी को एक लाइब्रेरी में गीता को सबसे नीचे और बाइबिल को सबसे ऊपर रखकर दर्शाया कि बाइबिल कितने ऊपर है और गीता कितने नीचे, तब स्वामी जी ने कहा कि गीता सभी धर्मों व ज्ञान की बुनियाद (Founding Stone) है इसलिए सबसे नीचे है.
8. स्वामी जी की नेतृत्व क्षमता अतुलनीय थी. उनके नेतृत्व के गुणों का इस बात से पता चल जाता है कि वे जिस भी देश में गए वहां लोग स्वत: ही उनकी ओर आकर्षित होते चले जाते थे.
9. स्वामी जी की शिक्षाओं व उनके जीवन से प्रेरणा पाकर हमारा समाज लक्ष्य का निर्धारण करके डेमोग्राफिक डिविडेंड (Demographic Dividend) का लाभ ले सकता है.
10. स्वामीजी सारा जीवन अन्धविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करते रहे.
11. स्वामीजी वैज्ञानिक सोच को विकसित करने पर जोर देते रहे.
12. विवेकानंद जी के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का कथन है कि “यदि आप पूर्व में जाना चाहते हैं तो पश्चिम में ना जाएं”.
13. स्वामी जी की Entire Philosophy लक्ष्य निर्धारण और उसे प्राप्त करने पर केंद्रित है.
14. स्वामी जी का यह कथन है कि “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए.”
15. रविंद्र नाथ टैगोर ने एक बार कहा था कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को जानिए.
16. स्वामी विवेकानन्द जी ने सेवा को मोक्ष का मार्ग बताया.
17. स्वामी विवेकानन्द हाल ही की शताब्दियों में भारत में जन्में सबसे महान व्यक्तियों के रूप में सर्वत्र सहज रूप से स्वीकार किये जाते हैं.
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