अजमेर में लोगों संस्कृति रेणु के प्रति भारी उत्साह, ३००० से अधिक लोगों ने दो दिनों में साहित्य प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
ईश्वर को प्राप्त करने के लिए संसार में अनेकानेक मार्ग हैं किंतु वेदान्त में ईश्वर कहता है कि कोई भी किसी भी मार्ग से मुझे भजे उसमें ही वह विलीन हो जाता है। स्वामी विवेकानन्द अपने समय से पूर्व के न केवल भारत अपितु सारे विश्व के समस्त दार्शनिकों, संतों, विचारकों की आभा जो समस्त मानवजाति का कल्याण करने के लिए कार्यरत है, को प्रकट करने वाले दिव्य रत्न हैं। रंग, लिंग, जाति, वर्ण, भाषा, भूषा तथा प्रान्त की बात नहीं, इन सभी से उपर उठकर प्रत्येक मनुष्य के भीतर परमात्मा के अंश का प्रकटीकरण का प्रयास करने वाला कोई दूसरा रत्नशिरोमणि विवेकानन्द के अलावा इस संसार में दूसरा कोई नहीं है।
उक्त विचार राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रोफेसर परमेन्द्र कुमार दशोरा ने स्वामी विवेकानन्द के १५०वें जन्म जयन्ती वर्ष के उपलक्ष में विवेकानन्द केन्द्र द्वारा अजमेर में चलाई जा रही भारतीय संस्कृति एवं विवेकानन्द साहित्य की चल प्रदर्शनी ''संस्कृति रेणु'' के स्वागत हेतु विविध संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि मानवता के प्रकटीकरण का मार्ग, विश्व में स्थापित एवं मान्य मत, पंथ, संप्रदायों का जो भी सारतत्व प्रकट हुआ है उसी का पूरा निचोड़ वेदान्त में है और उसी वेदान्त को उत्पन्न एवं जनसामान्य में प्रकट करने वाली पुण्य भूमि भारत है। स्वामी विवेकानन्द ने अपने संपूर्ण जीवन में उसी वेदान्त को प्रत्येक प्राणी में प्रकट करने का कार्य किया, वे पाथेय बने, मार्ग का निर्धारण किया एवं उस मार्ग पर चलकर प्राप्त होने वाली मंजिल को उन्होंने आने वाली युवा पीढी के लिए छोड दिया। विवेकानन्द का साहित्य आज हमें बताता है कि कैसे हम स्वयं बन सकते हैं और दूसरों को बना सकते हैं। प्रोफसर दशोरा ने बताया कि आज की युवा पीढी के समक्ष जिज्ञासा उत्पन्न करना ही हमारा लक्ष्य हो, जिज्ञासा को दबाकर नहीं उसे शांत करके ही हम आगे बढ सकते हैं। आज हमें स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को पढ कर उसे रट कर कुछ दृष्टांत दे देने वाले युवाओं की आवश्यकता नहीं है अपितु स्वामी विवेकानन्द का साहित्य समालोचन की दृष्टि से देखने वाले, उसमें तर्क ढूंढने वाले एवं ऐसे दिव्य युवा जो उसमें भी संशोधन निकाल सकें और सारतत्व का प्रकटीकरण कर सकें, ऐसे युवाओं की आवश्यकता है। ऐसे ही युवा समाज में विवेकानन्द के रूप में प्रकट हो सकते हैं। भारत में ही करोडों भारतवासी स्वामी विवेकानन्द बनने का सामर्थ्य रखते हैं। इस रत्न की रश्मियों को भारतवासियों रूपी दर्पण में प्रकाशित करने से ही भारत आगे बढ सकता है। आज हमें रामकृष्ण सरीखा गृहस्थ जीवन बिताने की आवश्यकता है तभी हम स्वंय विवेकानन्द हो सकते हैं और नए विवेकानन्द का निर्माण कर सकते हैं। हमें शक्तियों का संचय करना होगा एवं नए विवेकानन्द तैयार करने होंगे। एक कदम तो बढ चुका है आगे और कदम बढाए रखने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर चिति संधान केन्द्र की स्वामी अनादि सरस्वती ने बहुत ही भावुक रूप से स्वामी विवेकानन्द के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यदि विवेकानन्द बनने की ओर कदम बढाना है तो उनकी पत्रावलियों को ध्यान से पढ ना होगा। स्वामी विवेकानन्द एक ज्वाला थे। वे एक ऐसा चमकता हीरा थे जो न केवल सूर्य की रोशनी में अपितु अंधेरे में भी प्रकाशित होता था। एक हीरा तभी प्रकाशित होता है जब उसे तराशा जाता है। अतः जिस प्रकार हीरा तराशने का कार्य अनुभवी जौहरी के हाथों में ही हो सकता है उसी प्रकार एक विवेकानन्द बनने के लिए ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जैसा गुरू भी आवश्यक है।
इसी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हनुमान सिंह जी ने भी विवेकानन्द के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विवेकानन्द तो एक ही सूर्य है उसके समान दूसरा कोई संसार में हो नहीं सकता।
भारत विकास परिषद् की डॉ. कमला गोखरू ने इस अवसर पर कहा कि आगामी वर्ष में बच्चों एवं युवाओं में स्वामी विवेकानन्द के कार्यों को लेकर परिषद् विद्यालयों में जाएगी तथा विवेकानन्द की शिक्षाओं एवं ज्ञान से आज की युवा पीढी को परिचित कराने का कार्य किया जाएगा।
समारोह में आगंतुकों ने संस्कृति रेणु का अवलोकन किया। इस अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र के प्रान्त संचालक डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली, प्रान्त प्रमुख श्री शिवराज शर्मा, विभाग प्रमुख अशोक पणिक्कर, सह विभाग प्रमुख स्वतन्त्र शर्मा, नगर संचालक दिनेश अग्रवाल, नगर प्रमुख कुसुम गौतम तथा नगर संगठक श्वेता दीदी उपस्थित थीं।
राजस्थान प्रान्त साहित्य सेवा प्रमुख उमेश चौरसिया ने बताया कि प्रथम चरण में १०४ दिन की संस्कृति रेणु की यात्रा में १५० विषयों पर आधारित पुस्तकों को सम्मिलित करते हुए राजस्थान के ५६ नगरों एवं कस्बों के ४०० स्थानों पर जाना निश्चित है तथा अजमेर में ७००० से अधिक लोगों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया है तथा ३०८९०/- रूपये से अधिक का साहित्य लोगों द्वारा क्रय किया गया।
ईश्वर को प्राप्त करने के लिए संसार में अनेकानेक मार्ग हैं किंतु वेदान्त में ईश्वर कहता है कि कोई भी किसी भी मार्ग से मुझे भजे उसमें ही वह विलीन हो जाता है। स्वामी विवेकानन्द अपने समय से पूर्व के न केवल भारत अपितु सारे विश्व के समस्त दार्शनिकों, संतों, विचारकों की आभा जो समस्त मानवजाति का कल्याण करने के लिए कार्यरत है, को प्रकट करने वाले दिव्य रत्न हैं। रंग, लिंग, जाति, वर्ण, भाषा, भूषा तथा प्रान्त की बात नहीं, इन सभी से उपर उठकर प्रत्येक मनुष्य के भीतर परमात्मा के अंश का प्रकटीकरण का प्रयास करने वाला कोई दूसरा रत्नशिरोमणि विवेकानन्द के अलावा इस संसार में दूसरा कोई नहीं है।
उक्त विचार राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रोफेसर परमेन्द्र कुमार दशोरा ने स्वामी विवेकानन्द के १५०वें जन्म जयन्ती वर्ष के उपलक्ष में विवेकानन्द केन्द्र द्वारा अजमेर में चलाई जा रही भारतीय संस्कृति एवं विवेकानन्द साहित्य की चल प्रदर्शनी ''संस्कृति रेणु'' के स्वागत हेतु विविध संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि मानवता के प्रकटीकरण का मार्ग, विश्व में स्थापित एवं मान्य मत, पंथ, संप्रदायों का जो भी सारतत्व प्रकट हुआ है उसी का पूरा निचोड़ वेदान्त में है और उसी वेदान्त को उत्पन्न एवं जनसामान्य में प्रकट करने वाली पुण्य भूमि भारत है। स्वामी विवेकानन्द ने अपने संपूर्ण जीवन में उसी वेदान्त को प्रत्येक प्राणी में प्रकट करने का कार्य किया, वे पाथेय बने, मार्ग का निर्धारण किया एवं उस मार्ग पर चलकर प्राप्त होने वाली मंजिल को उन्होंने आने वाली युवा पीढी के लिए छोड दिया। विवेकानन्द का साहित्य आज हमें बताता है कि कैसे हम स्वयं बन सकते हैं और दूसरों को बना सकते हैं। प्रोफसर दशोरा ने बताया कि आज की युवा पीढी के समक्ष जिज्ञासा उत्पन्न करना ही हमारा लक्ष्य हो, जिज्ञासा को दबाकर नहीं उसे शांत करके ही हम आगे बढ सकते हैं। आज हमें स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को पढ कर उसे रट कर कुछ दृष्टांत दे देने वाले युवाओं की आवश्यकता नहीं है अपितु स्वामी विवेकानन्द का साहित्य समालोचन की दृष्टि से देखने वाले, उसमें तर्क ढूंढने वाले एवं ऐसे दिव्य युवा जो उसमें भी संशोधन निकाल सकें और सारतत्व का प्रकटीकरण कर सकें, ऐसे युवाओं की आवश्यकता है। ऐसे ही युवा समाज में विवेकानन्द के रूप में प्रकट हो सकते हैं। भारत में ही करोडों भारतवासी स्वामी विवेकानन्द बनने का सामर्थ्य रखते हैं। इस रत्न की रश्मियों को भारतवासियों रूपी दर्पण में प्रकाशित करने से ही भारत आगे बढ सकता है। आज हमें रामकृष्ण सरीखा गृहस्थ जीवन बिताने की आवश्यकता है तभी हम स्वंय विवेकानन्द हो सकते हैं और नए विवेकानन्द का निर्माण कर सकते हैं। हमें शक्तियों का संचय करना होगा एवं नए विवेकानन्द तैयार करने होंगे। एक कदम तो बढ चुका है आगे और कदम बढाए रखने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर चिति संधान केन्द्र की स्वामी अनादि सरस्वती ने बहुत ही भावुक रूप से स्वामी विवेकानन्द के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यदि विवेकानन्द बनने की ओर कदम बढाना है तो उनकी पत्रावलियों को ध्यान से पढ ना होगा। स्वामी विवेकानन्द एक ज्वाला थे। वे एक ऐसा चमकता हीरा थे जो न केवल सूर्य की रोशनी में अपितु अंधेरे में भी प्रकाशित होता था। एक हीरा तभी प्रकाशित होता है जब उसे तराशा जाता है। अतः जिस प्रकार हीरा तराशने का कार्य अनुभवी जौहरी के हाथों में ही हो सकता है उसी प्रकार एक विवेकानन्द बनने के लिए ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जैसा गुरू भी आवश्यक है।
इसी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हनुमान सिंह जी ने भी विवेकानन्द के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विवेकानन्द तो एक ही सूर्य है उसके समान दूसरा कोई संसार में हो नहीं सकता।
भारत विकास परिषद् की डॉ. कमला गोखरू ने इस अवसर पर कहा कि आगामी वर्ष में बच्चों एवं युवाओं में स्वामी विवेकानन्द के कार्यों को लेकर परिषद् विद्यालयों में जाएगी तथा विवेकानन्द की शिक्षाओं एवं ज्ञान से आज की युवा पीढी को परिचित कराने का कार्य किया जाएगा।
समारोह में आगंतुकों ने संस्कृति रेणु का अवलोकन किया। इस अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र के प्रान्त संचालक डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली, प्रान्त प्रमुख श्री शिवराज शर्मा, विभाग प्रमुख अशोक पणिक्कर, सह विभाग प्रमुख स्वतन्त्र शर्मा, नगर संचालक दिनेश अग्रवाल, नगर प्रमुख कुसुम गौतम तथा नगर संगठक श्वेता दीदी उपस्थित थीं।
राजस्थान प्रान्त साहित्य सेवा प्रमुख उमेश चौरसिया ने बताया कि प्रथम चरण में १०४ दिन की संस्कृति रेणु की यात्रा में १५० विषयों पर आधारित पुस्तकों को सम्मिलित करते हुए राजस्थान के ५६ नगरों एवं कस्बों के ४०० स्थानों पर जाना निश्चित है तथा अजमेर में ७००० से अधिक लोगों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया है तथा ३०८९०/- रूपये से अधिक का साहित्य लोगों द्वारा क्रय किया गया।
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