Monday, March 26, 2012

विवेक विचार : आंतरिक सुरक्षा : बढ़ते ख़तरे और हमारी तैयारियाँ

Shri Dipak Chakravarty, MD, NRL inaugurating the NRL Conference Hall at the VKICआई.बी. के पूर्व प्रमुख तथा विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउण्डेशन के निदेशक श्री अजीत ङोवाल ने कहा है कि आज आंतरिक सुरक्षा देश के लिये प्रमुख समस्या बन गई है पर उससे निपटने के लिए हमारी जैसी तैयारियां होनी चाहिए उसका अभाव है उन्होने कहा कि सांस्कृतिक एवं एतिहासिक जड़ों पर कुठाराघात करके न तो देश को सुरक्षित किया जा सकता है और न ही सबल राष्ट्र की संकल्पना की जा सकती है ।

श्री ङोवाल कल यहां शहीद भवन में विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा भोपाल द्वारा ”आंतरिक सुरक्षा; बढ़ते खतरे और हमारी तैयारियाँ विषय पर आयोजित "विवेक विचार" को सम्बोधित कर रहे थे । उन्होने कहा कि आज हम सामान्यतः जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट मानते है वह प्रमुख रूप से राज्य की सुरक्षा पर संकट होता है जो चाहे आंतकवाद के रूप में पैदा या किसी दुर्घटना से या फिर कुपोषण या गरीबी से, मरते तो लोग ही हैं और परिणाम भी समान होते है ।  राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा राष्ट्र की संकल्पना के आधार पर तय होनी चाहिये, वे उपाय जिससे हमारा राष्ट्र शक्तिशाली और सक्षम बनकर विश्व के कल्याण में अपना योगदान दे सके ।

उन्होने कहा कि विश्व कल्याण भारत का सर्वोच्च लक्ष्य रहा है और इसी के कारण भारत की पहचान है, परन्तु हमने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी विदेशी विचारों के आधार पर ही व्यवस्था का आधार बनाया जिसके कारण सर्वत्र विभ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई और चारो और विभिन्न प्रकार के खतरो से हम घिर गए हैं । उन्होने उदाहरण देते हुए बताया कि स्वतंत्रता के पूर्व भारत में भाई-बहिन ओर पति-पत्नी के बीच प्रेम की मिसाल दी जाती थी अब कानून ऐसे बनाये जा रहे हैं जिससे भारतीय परिवार बुरी तरह टूट रहे है ।

श्री ङोवाल ने कहा कि आजकल बाह्य और आंतरिक खतरों में भेद करना मुश्किल है अफगानिस्तान और वियतनाम का उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि युद्ध बहुत खर्चीला हो गया है और युद्ध जीतने के बाद भी राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति की कोई आश्वस्ति नहीं है ।  इसी कारण अधिकतर देश छद्म युद्ध का रास्ता अपना रहे हैं । पाकिस्तान, बंग्लादेश और चीन द्वारा छेड़े गये छद्म युद्ध से उत्पन्न भारत में आंतरिक सुरक्षा के खतरो पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि इससे समग्र रूप से निपटने के लिए देश में प्रबल राष्ट्रवाद की भावना जाग्रत करने की जरूरत है उन्होने कहा कि मुगल शासनकाल में मुसलमान अल्पसंख्यक होते हुए भी अल्पसंख्यक नहीं माना जाता था और अब उनकी संख्या निरन्तर बढ़ने के बाद भी अल्पसंख्यक माना जा रहा है । पंथ निरपक्षता की भारत में कभी आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि हमने इस आधार पर कभी भेद नहीं किया । जातिवाद और क्षेत्रवाद भी खतरे के रूप में हमारे सामने है ।

Shri Dipak Chakravarty, MD, NRL inaugurating the NRL Conference Hall at the VKICश्री ङोवाल ने कहा कि राष्ट्र एक निरन्तर संकल्पना है जिसमें अतीत के अनुभव एवं वर्तमान की परिस्थितियों पर विचार करते हुए भावी पीढ़ी का हित समाहित होता हैं । इस संकल्पना के जागरण के लिए विवेकानन्द केन्द्र जैसे सामान विचारों के संगठनों को प्राथमिकता से महत्व देने की आवश्यकता है ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय पुलिस अकादमी हैदराबाद के पूर्व निदेशक डा. महेन्द्र शुक्ल ने कहा कि आतंरिक सुरक्षा की आश्वस्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति की जागरूकता और सहभागिता आवश्यक है । उन्होने कहा कि आपकी सुरक्षा आपके हाथ में है ।  पुलिस जिस दबाव और परिस्थितियों में काम करती है उससे इस दिशा में बहुत अधिक अपेक्षा नहीं की जा सकती ।

इससे पूर्व विवेकानन्द केन्द्र के भोपाल नगर संगठक श्री अभिनेश कटेहा ने विवेकानन्द केन्द्र और सार्ध शती समारोह के बारे में विस्तार से जानकारी दी । अन्त में नगर संचालक श्री बी.के. सांघी ने आभारी व्यक्त किया कार्यक्रम का संचालन नगर प्रमुख श्री मनोज पाठक ने किया ।

No comments:

Post a Comment