विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी, बिहार प्रान्त का ‘‘विजय ही विजय’’ युवा अभियान का तृतिय चरण नेतृत्व विकास महाशिविर के रुप में भागलपुर में दिसम्बर २५ से २९ दिसम्बर २०११ को सरस्वती विद्या मंदिर, नरगा कोठी, चंपानगर में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। युवा ही युवा अभियान बिहार के १८ जिलों के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सम्पन्न हुआ। द्वितिय चरण के रुप में एकदिवसीय शिविरों के माध्यम से चयनित ११७ प्रतिभागियों ने प्रतियोगिता में भाग लिया। बिहार और मध्य प्रान्त के ७० कार्यकताओं ने योगदान दिया।
महाशिविर का प्रारम्भ दो दिवसीय गण प्रमुख प्रशिक्शण से प्रारम्भ हुआ जो विवेकानन्द केन्द्र के संयुक्त राश्ट्रीय महासचिव श्री किशोर जी के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। ३० गण प्रमुख,सह गण प्रमुखों ने प्रशिक्शिण प्राप्त किया।
प्रतिभागी २५ तारीख को सायं ५ बजे तक शिविर में पहुंच गये। तत्पश्चात भजन संध्या से महाशिविर प्रारम्भ हुआ,भजन संध्या के पश्चात भोजन और उसके प्रश्चात शिविर संबंधी सूचनाओं के लिए व्रिकमशीला सभागार में एकत्र हुए। शिविर सूचना मे परिचय के पश्चात् ,शिविर कि दिनचर्या, कार्यकताओं का परिचय हुआ, उसके बाद गण बैठक होकर दीप निमिलन हुआ।
महाशिविर का औपचारिक उद्द्याटन २६ दिसम्बर को प्रातः ९:३० बजे मुख्य अतिथि के रूप में बिहार मानवाधिकार आयोग के सदस्य मा. न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद ने दीप प्रज्जवलन कर किया, साथ ही मंच पर विवेकानन्द केन्द्र के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष मा. बालकृष्णन जी एवं शिविर अधिकारी के रूप में बिहार इन्स्टीच्युट ओफ सिल्क टेक्सटाइल के प्रोफेसर श्री सुबोध विश्वकर्मा मंच पर आसीन हुए। मा. न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद अपने उद्बोधन में कहा कि बचपन में शारीरिक शक्ति से काम चलता है, वृद्धावस्था में शारीरिक शक्ति समाप्त हो जाती है तब मानसिक शक्ति से काम चलता है। युवावस्था में यह दोनों होते हैं जिसे विकास और सत्य में लगाने की जरूरत है हमारी उन्नति तभी होगीं जब हमारा युवा वर्ग अपने को बदलेगा।
मा. बालकृष्णन जी ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होनें कहा भारत में ५५ प्रतिशत युवा है । यह भारत की सबसे बड़ी शक्ति है। यहाँ आये युवक-युवतियों को मै नमन करता हूँ। आप अपने अन्दर की शक्ति को पहचाने। एक असाधारण आदर्श बनें। यह शिविर आपके जीवन का जनतदपदह चवपदज होगा। मा. बालकृष्णन जी के उद्बोधन के साथ उद्द्याटन सत्र की समप्ति हुयी।
संपूर्ण महाशिविर का संचालन एक विषय पर केन्द्रित था “विजय” और प्रत्येक दिवस का एक विषय होता था जैसे प्रथम दिवस था “साध्य”, दूसरे दिन का था “साधन”, तीसरे दिन का “साधन” और अंतिम दिवस का था “समपर्ण”। इन्हीं विषयों पर संपूर्ण दिनचर्या केन्द्रित रहती थी खेल, गीत, बौद्विक सत्र, मंथन आदी सभी प्रत्येक दिन के विषय पर रहते थे और सरल शब्दों में कहे तो प्रथम दिन विजय इच्छा, विजय प्रेरणा, विजय संकल्प, विजय समर्पण। संपूर्ण महाशिविर एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करता था। यह सभी के लिए समान रूप से लागू थी। अपने व्यक्तिगत जीवन में भी प्रतिभागी इस दिनचर्या को अपनाते हैं तो कुछ दिनों में हि परिणाम दिखना प्रारम्भ हो जाते है। प्रातः ५:०० बजे जागरण से प्रारम्भ हो रात्री १०:०० बजे विश्राम तक। जागरण के पश्चात् ५:३० प्रातः स्मरण एवं शारीरिक और छात्रों के लिए अत्यत उपयोगी परीक्षा दे हॅंसते हॅंसते कार्यशाला का भी अभ्यास दिया गया जिसमें आत्मविश्वास, एकाग्रता और स्मरण शक्ति को कैसे बढाये। यही सब आज की शिक्शा पद्वति में आवश्यक भी है। तत्पश्चात् गीता पठन के साथ शान्ति पाठ होता था और ७:४५ सब अल्पाहार के लिए अन्नपूर्णा कक्ष में जाते थे। ८:४५ में श्रमानुभव के लिए अपने अपने गणों में एकत्र होते जहाँ उनको कार्य दिया जाता था। ९:०० बजे श्रमपरिहार और १०:०० बजे प्रथम सत्र के लिए एकत्र हो जाते थे तत्पश्चात ११:०० से १२:३० मंथन और गौरव क्षण अपने अपने समाज जीवन का अनुभव वरिश्ठ कार्यकर्ता बताते थे। दोपहरमें ३:०० जलपान और ३:३० आज्ञापालन का अभ्यास एवं जोश भरा संस्कार वर्ग होता था। ५:०० पुनः विक्रमशीला कक्ष में द्वितिय सत्र के लिए एकत्रीकरण होना था। ६:४५ बजे भजन संध्या एवं ७:३० भोजन होता था। भोजन पश्चात रात्री ८:३० बजे प्रेरणा से पुनरूथान जिसमें ।नकपव और अपेपनंस के माध्यम से कुछ घटना और बौद्विक होते थे एवं एक महापुरूशों की प्रेरक घटना होती थी। आत्मावलोकन पश्चात् गण बैठक जिसमें सभी गणशः अपनी दैनंदीनी लिखते थे।
प्रथम सत्र में मा. बालकृष्णन जी ”पुण्यभूमी भारत“ पर बोले। उन्होंने बताया के परिवार का पतन हमारे देश का पतन है। हम पाश्चातय विचारों से प्रभावित हैं जो व्यक्तिवादी है। हम अतिथि को भी देव मानते है ”अतिथि देवो भवः“। हम विविधता में एकता देखते है। मार्क ट्वेन ने कहा था - ‘‘भारत अद्भूत’’ है। मैकाले ने कहा- भारत को अगर नष्ट करना है तो उसकी जडों को काटो, असकी संस्कृति को खत्म करो। हम अपने स्वाभिमान को पहचाने, अपने को पहचाने, अपनी संस्कृति को पहचाने।
वक्ता श्री अनिल कुमार ठाकुर जो बिहार प्रान्त के राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक हैं, उन्होंने ‘‘वर्तमान चुनौतियाँ’’ विषय पर कहा की आतकंवाद यह भीतर से हो रहा है और इसका बीजारोपण बाहर से हो रहा है । इसे धर्म से जोडकर जेहादी आतकंवाद का नाम दिया जा रहा है। एक और लव जेहाद है जिसमें लडकियाँ को शादी के नाम पर बाहर ले जाया जाता है और गलत कामों में लगाया जाता है। नक्सलवाद बंगाल से निकल कर पूरे देश में फैल चुका है। जो विकास को रोक रहा है। मोबाइल टावरों, ट्रेन की पटरियाँ, स्कूल-बिल्डिंग को उड़ा रहे है। भोगवाद/बाजार घर-घर में आ गया है जिसे कम्पनियाँ, टी.वी. चैनल बढावा दे रहे हैं। मिशनरियों द्वारा धर्म परिवर्तन एक बडी चुनौती है। उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द की दिन-दहाडे मिशनरियों ने हत्या कर दि। भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अन्ना हजारे को आन्दोलन करना पड रहा है। हमारे देश में वाँलमार्ट; अंसउंतजद्ध जैसी बहुराश्ट्रीय कम्पनियों का आना रोकना होगा। चीन बनी वस्तुओं का बहिष्कार करना होगा।
विभिन्न समाज क्षेत्र मे कार्य करने वाले कार्यकर्ता दक्षिण बिहार के श्री नरेन्द्र भाई जो राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं, ने कहा कि प्रचारक कार्यकर्ता को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को छोडना पडता है, त्याग करना पडता है। देश ही उसके लिए सब कुछ होता है।
दूसरे दिन के द्वितिय सत्र का विशय था ”संगठन में शक्ति“ और वक्ता थीं विवेकानन्द केन्द्र की राष्ट्रिय उपाध्यक्षा मा. निवेदिता दीदी उन्होनें महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा- कौरवों के पास 11 अक्शहौणी सेना होते हुए भी पान्डवों की 7 अक्शहौणी सेना से हार गयी, क्योंकि संगठित नहीं थें। जब जब हम हारे संगठित नहीं थें। वीर होना ही पर्याप्त नहीं है, संगठित होना और शत्रु को पहचाना भी जरूरी है। संगठन की बात सोचेंगे तो वैचारिक बदलाव स्वतः आयेगा।
विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव श्री भानूदास जी ने ”संगठन तंत्र-मंत्र“ पर बोले। उन्होनें कहा - हम चुनौतिय़ाँ का सामना करने के लिए स्थायी तंत्र चाहिए सबसे पहले अपने मन कैसे संगठित करें ? उसके पश्चात् एकनाथजी के दिये चार सुत्रों लोक सम्पर्क, लोक संग्रह, लोक संस्कार, लोक व्यवस्था को अपनायें और सब तक यह विचार पहुँचायें।
अपरान्ह दूसरे सत्र में ”अब अपनी ही तो बारी है“ पर मा. निवेदिता दीदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- आज के युवाओं पर मेरा विश्वास है और अब आपकी बारी है इस संदेश को आगे बढाने की। मा. निवेदिता दीदी ने कहा-अपने भूत को पहचानों तब वर्तमान में अपने पाँव गडाओं और भविष्य की ओर अपनी नजर रखो। मन और शरीर को अच्छा आहार दें।
२९ दिसम्बर २०११ को आहुति सत्र में मा. निवेदिता दीदी ने सबका मार्गदर्शन करते हुए कहा- परीक्षा के साथ ही चैरेवती चैरेवती शुरू हो गयी है। आप कुछ संकल्प लें उस संकल्प को पूरा करने के लिए जितनी आहुतियाँ देंगे, उसकी ज्वाला उतनी ही धधकती रहेगी।
समापन सत्र में सबने शिविर गीत गाया और मुख्य अतिथि भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. कृष्णानन्दजी दूबे नें युवा वर्ग को इस प्रशिक्षण के बाद अपनी बुद्धि और अपनी युवा शक्ति का सही इस्तेमाल करने की सलाह दि।
इसके पश्चात् मा. भानूदासजी ने संगठन की शक्ति पर बल देते हुए युवाओं को अपने लक्ष्य और जीवन को विकसित करने पर जोर दिया।
सुबोध विश्वकर्मा जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। शान्तिपाठ के साथ शिविर का समापन हुआ। इन पाँच दिनों में सभी एक परिवार का अंग बन चुके है।
महाशिविर का प्रारम्भ दो दिवसीय गण प्रमुख प्रशिक्शण से प्रारम्भ हुआ जो विवेकानन्द केन्द्र के संयुक्त राश्ट्रीय महासचिव श्री किशोर जी के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। ३० गण प्रमुख,सह गण प्रमुखों ने प्रशिक्शिण प्राप्त किया।
प्रतिभागी २५ तारीख को सायं ५ बजे तक शिविर में पहुंच गये। तत्पश्चात भजन संध्या से महाशिविर प्रारम्भ हुआ,भजन संध्या के पश्चात भोजन और उसके प्रश्चात शिविर संबंधी सूचनाओं के लिए व्रिकमशीला सभागार में एकत्र हुए। शिविर सूचना मे परिचय के पश्चात् ,शिविर कि दिनचर्या, कार्यकताओं का परिचय हुआ, उसके बाद गण बैठक होकर दीप निमिलन हुआ।
महाशिविर का औपचारिक उद्द्याटन २६ दिसम्बर को प्रातः ९:३० बजे मुख्य अतिथि के रूप में बिहार मानवाधिकार आयोग के सदस्य मा. न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद ने दीप प्रज्जवलन कर किया, साथ ही मंच पर विवेकानन्द केन्द्र के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष मा. बालकृष्णन जी एवं शिविर अधिकारी के रूप में बिहार इन्स्टीच्युट ओफ सिल्क टेक्सटाइल के प्रोफेसर श्री सुबोध विश्वकर्मा मंच पर आसीन हुए। मा. न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद अपने उद्बोधन में कहा कि बचपन में शारीरिक शक्ति से काम चलता है, वृद्धावस्था में शारीरिक शक्ति समाप्त हो जाती है तब मानसिक शक्ति से काम चलता है। युवावस्था में यह दोनों होते हैं जिसे विकास और सत्य में लगाने की जरूरत है हमारी उन्नति तभी होगीं जब हमारा युवा वर्ग अपने को बदलेगा।
मा. बालकृष्णन जी ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होनें कहा भारत में ५५ प्रतिशत युवा है । यह भारत की सबसे बड़ी शक्ति है। यहाँ आये युवक-युवतियों को मै नमन करता हूँ। आप अपने अन्दर की शक्ति को पहचाने। एक असाधारण आदर्श बनें। यह शिविर आपके जीवन का जनतदपदह चवपदज होगा। मा. बालकृष्णन जी के उद्बोधन के साथ उद्द्याटन सत्र की समप्ति हुयी।
संपूर्ण महाशिविर का संचालन एक विषय पर केन्द्रित था “विजय” और प्रत्येक दिवस का एक विषय होता था जैसे प्रथम दिवस था “साध्य”, दूसरे दिन का था “साधन”, तीसरे दिन का “साधन” और अंतिम दिवस का था “समपर्ण”। इन्हीं विषयों पर संपूर्ण दिनचर्या केन्द्रित रहती थी खेल, गीत, बौद्विक सत्र, मंथन आदी सभी प्रत्येक दिन के विषय पर रहते थे और सरल शब्दों में कहे तो प्रथम दिन विजय इच्छा, विजय प्रेरणा, विजय संकल्प, विजय समर्पण। संपूर्ण महाशिविर एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करता था। यह सभी के लिए समान रूप से लागू थी। अपने व्यक्तिगत जीवन में भी प्रतिभागी इस दिनचर्या को अपनाते हैं तो कुछ दिनों में हि परिणाम दिखना प्रारम्भ हो जाते है। प्रातः ५:०० बजे जागरण से प्रारम्भ हो रात्री १०:०० बजे विश्राम तक। जागरण के पश्चात् ५:३० प्रातः स्मरण एवं शारीरिक और छात्रों के लिए अत्यत उपयोगी परीक्षा दे हॅंसते हॅंसते कार्यशाला का भी अभ्यास दिया गया जिसमें आत्मविश्वास, एकाग्रता और स्मरण शक्ति को कैसे बढाये। यही सब आज की शिक्शा पद्वति में आवश्यक भी है। तत्पश्चात् गीता पठन के साथ शान्ति पाठ होता था और ७:४५ सब अल्पाहार के लिए अन्नपूर्णा कक्ष में जाते थे। ८:४५ में श्रमानुभव के लिए अपने अपने गणों में एकत्र होते जहाँ उनको कार्य दिया जाता था। ९:०० बजे श्रमपरिहार और १०:०० बजे प्रथम सत्र के लिए एकत्र हो जाते थे तत्पश्चात ११:०० से १२:३० मंथन और गौरव क्षण अपने अपने समाज जीवन का अनुभव वरिश्ठ कार्यकर्ता बताते थे। दोपहरमें ३:०० जलपान और ३:३० आज्ञापालन का अभ्यास एवं जोश भरा संस्कार वर्ग होता था। ५:०० पुनः विक्रमशीला कक्ष में द्वितिय सत्र के लिए एकत्रीकरण होना था। ६:४५ बजे भजन संध्या एवं ७:३० भोजन होता था। भोजन पश्चात रात्री ८:३० बजे प्रेरणा से पुनरूथान जिसमें ।नकपव और अपेपनंस के माध्यम से कुछ घटना और बौद्विक होते थे एवं एक महापुरूशों की प्रेरक घटना होती थी। आत्मावलोकन पश्चात् गण बैठक जिसमें सभी गणशः अपनी दैनंदीनी लिखते थे।
प्रथम सत्र में मा. बालकृष्णन जी ”पुण्यभूमी भारत“ पर बोले। उन्होंने बताया के परिवार का पतन हमारे देश का पतन है। हम पाश्चातय विचारों से प्रभावित हैं जो व्यक्तिवादी है। हम अतिथि को भी देव मानते है ”अतिथि देवो भवः“। हम विविधता में एकता देखते है। मार्क ट्वेन ने कहा था - ‘‘भारत अद्भूत’’ है। मैकाले ने कहा- भारत को अगर नष्ट करना है तो उसकी जडों को काटो, असकी संस्कृति को खत्म करो। हम अपने स्वाभिमान को पहचाने, अपने को पहचाने, अपनी संस्कृति को पहचाने।
वक्ता श्री अनिल कुमार ठाकुर जो बिहार प्रान्त के राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक हैं, उन्होंने ‘‘वर्तमान चुनौतियाँ’’ विषय पर कहा की आतकंवाद यह भीतर से हो रहा है और इसका बीजारोपण बाहर से हो रहा है । इसे धर्म से जोडकर जेहादी आतकंवाद का नाम दिया जा रहा है। एक और लव जेहाद है जिसमें लडकियाँ को शादी के नाम पर बाहर ले जाया जाता है और गलत कामों में लगाया जाता है। नक्सलवाद बंगाल से निकल कर पूरे देश में फैल चुका है। जो विकास को रोक रहा है। मोबाइल टावरों, ट्रेन की पटरियाँ, स्कूल-बिल्डिंग को उड़ा रहे है। भोगवाद/बाजार घर-घर में आ गया है जिसे कम्पनियाँ, टी.वी. चैनल बढावा दे रहे हैं। मिशनरियों द्वारा धर्म परिवर्तन एक बडी चुनौती है। उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द की दिन-दहाडे मिशनरियों ने हत्या कर दि। भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अन्ना हजारे को आन्दोलन करना पड रहा है। हमारे देश में वाँलमार्ट; अंसउंतजद्ध जैसी बहुराश्ट्रीय कम्पनियों का आना रोकना होगा। चीन बनी वस्तुओं का बहिष्कार करना होगा।
विभिन्न समाज क्षेत्र मे कार्य करने वाले कार्यकर्ता दक्षिण बिहार के श्री नरेन्द्र भाई जो राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं, ने कहा कि प्रचारक कार्यकर्ता को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को छोडना पडता है, त्याग करना पडता है। देश ही उसके लिए सब कुछ होता है।
दूसरे दिन के द्वितिय सत्र का विशय था ”संगठन में शक्ति“ और वक्ता थीं विवेकानन्द केन्द्र की राष्ट्रिय उपाध्यक्षा मा. निवेदिता दीदी उन्होनें महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा- कौरवों के पास 11 अक्शहौणी सेना होते हुए भी पान्डवों की 7 अक्शहौणी सेना से हार गयी, क्योंकि संगठित नहीं थें। जब जब हम हारे संगठित नहीं थें। वीर होना ही पर्याप्त नहीं है, संगठित होना और शत्रु को पहचाना भी जरूरी है। संगठन की बात सोचेंगे तो वैचारिक बदलाव स्वतः आयेगा।
विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव श्री भानूदास जी ने ”संगठन तंत्र-मंत्र“ पर बोले। उन्होनें कहा - हम चुनौतिय़ाँ का सामना करने के लिए स्थायी तंत्र चाहिए सबसे पहले अपने मन कैसे संगठित करें ? उसके पश्चात् एकनाथजी के दिये चार सुत्रों लोक सम्पर्क, लोक संग्रह, लोक संस्कार, लोक व्यवस्था को अपनायें और सब तक यह विचार पहुँचायें।
अपरान्ह दूसरे सत्र में ”अब अपनी ही तो बारी है“ पर मा. निवेदिता दीदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- आज के युवाओं पर मेरा विश्वास है और अब आपकी बारी है इस संदेश को आगे बढाने की। मा. निवेदिता दीदी ने कहा-अपने भूत को पहचानों तब वर्तमान में अपने पाँव गडाओं और भविष्य की ओर अपनी नजर रखो। मन और शरीर को अच्छा आहार दें।
२९ दिसम्बर २०११ को आहुति सत्र में मा. निवेदिता दीदी ने सबका मार्गदर्शन करते हुए कहा- परीक्षा के साथ ही चैरेवती चैरेवती शुरू हो गयी है। आप कुछ संकल्प लें उस संकल्प को पूरा करने के लिए जितनी आहुतियाँ देंगे, उसकी ज्वाला उतनी ही धधकती रहेगी।
समापन सत्र में सबने शिविर गीत गाया और मुख्य अतिथि भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. कृष्णानन्दजी दूबे नें युवा वर्ग को इस प्रशिक्षण के बाद अपनी बुद्धि और अपनी युवा शक्ति का सही इस्तेमाल करने की सलाह दि।
इसके पश्चात् मा. भानूदासजी ने संगठन की शक्ति पर बल देते हुए युवाओं को अपने लक्ष्य और जीवन को विकसित करने पर जोर दिया।
सुबोध विश्वकर्मा जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। शान्तिपाठ के साथ शिविर का समापन हुआ। इन पाँच दिनों में सभी एक परिवार का अंग बन चुके है।
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