Friday, December 12, 2025

भारतीय संस्कृति का मूल है एकात्म जीवन दर्शन - निवेदिता दीदी

भारतीय संस्कृति एकात्म जीवन दर्शन पर आधारित है। संस्कृति के तीन घटक हैं – जीवन दर्शनजीवन मूल्य और जीवन व्यवस्था। संस्कृति के ये तीनों घटक पूरे भारत में समान रूप से विद्यमान हैइसलिए भारतीय संस्कृति तात्विक रूप से एक है। एकात्म जीवन दर्शन परस्पर सम्बन्धितपरस्परावलम्बी तथा परस्परपूरक है। यह बात विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा पद्मश्री निवेदिता दीदी ने कही। वे हिन्दी विभागराष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित भारतीय संस्कृति : चुनौतियाँ और सम्भावनाएं’ विषय पर बोल रही थीं। इस दौरान व्यासपीठ पर रा.तु.म. नागपुर विश्वविद्यालय मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरेटी तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय उपस्थित थे।

निवेदिता दीदी ने आगे कहा कि हमारे देश के प्रत्येक मतपंथ या सम्प्रदायों के अनुयायी से लेकर सामान्य मनुष्य भी कहता है कि ईश्वर सर्वत्र है। कोई यह दावा नहीं करता कि मैं जिस देवता या देवी की पूजा करता हूँ वही सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करता है। हमारे यहाँ नदीवृक्षपर्वतजीव-जन्तुओं के साथ ही सम्पूर्ण प्रकृति की पूजा होती है। यही भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है। एकात्मभाव ही भारतीय जीवनशैली और उपासना पद्धति का मूल है।

राष्ट्रीय ध्येय के लिए जीवन जियें

निवेदिता दीदी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने भारत के दैवीय लक्ष्य से राष्ट्र को अवगत कराया था। विश्व को आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि भारत को देना है। किन्तु आज हम अपने धर्मसंस्कृति यहाँ तक अपने आप को भूले बैठें हैं। दीदी ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हम मैं’ और मेरा’ की सोच में उलझे हुए हैं। बाहरी दिखावा और व्यर्थ चर्चाओं में समय बर्बाद करते हैं। हमारी बातें तो उदात्त होती हैं किन्तु हमारे आचरण निम्न स्तर का होता है। भौतिक इच्छाओं में ही फंसे होने के कारण हम अपने जीवन का उद्देश्य को भूल बैठे हैं। पर्यावरण का क्षरण हो रहा है। हमारे परिवार टूट रहे हैंऔर हम गम्भीर नहीं है। इसलिए हमें सम्भलने की जरूरत है। परिवारों में परस्पर संवादसंयमसंस्कारों की आवश्यकता है। ईश्वरीय शक्ति को आत्म-संयम और अनुशासन से ही अनुभव किया जा सकता है। दीदी ने जोर देकर कहा कि जीवन का वास्तविक आनंद राष्ट्र के ध्येय के साथ एकाकार होने में हैं। जीवन का यह वास्तविक आनंद खोकर हम विकसित नहीं हो सकते।

अपने अध्यक्षीय भाषण में मानविकी संकाय के अधिष्ठता डॉ. शामराव कोरेटी ने कहा कि हमारी संस्कृति महान है। हमारे आदर्श महान है। किन्तु हमारी कथनी और करनी में समानता नहीं हैइसलिए समस्या है। हमें अपनी सांस्कृतिक मूल्यों को जीना होगा। इससे पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने अपने प्रास्ताविक भाषण में कहा कि राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयन्ती को भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन पर बल दे रही है। भारतीय भाषा अनेक हैंकिन्तु भाव एक है। सभी भारतीय भाषाएं भारतीय संस्कृति की संवाहक है। डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका चित्राताई जोशीविवेकानन्द केन्द्र की महाराष्ट्र प्रान्त संगठक सुजाताताई दलवीकेन्द्र के विदर्भ विभाग प्रमुख भरत जोशीतरुण भारत के संचालक मीराताई कडबेएबीवीपी के नागपुर महानगर संगठन मंत्री देवाशीष गोतरकरडॉ. चन्द्रकान्त रागीटडॉ. राजेन्द्र काकड़ेडॉ. शेषराव बावनकरसुनील किटकरुब्रजेश मानसचारुदत्त कहू सहित बड़ी संख्या में प्राध्यापकशोधार्थी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। 

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