Thursday, September 8, 2016

समर्थ शिक्षक ही समर्थ भारत बना सकता है

विगत दस दिन से क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, अजमेर में उत्तर भारत के विभिन्न प्रदेशों से डिप्लोमा इन काउंसलिंग एवं गाइडंेस का कोर्स कर रहे 38 शिक्षकों के लिए विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी, राजस्थान प्रान्त के द्वारा समर्थ शिक्षक-समर्थ भारत संकल्पना पर आधारित योग प्रतिमान कार्यशाला का समापन हुआ।

इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य बताते हुए कार्यशाला संयोजक एवं विवेकानन्द केन्द्र के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डाॅ. स्वतन्त्र शर्मा ने बताया कि आज के समय में शिक्षकों के जीवन में अत्यधिक तनाव व्याप्त हो गया है जिसका सीधा प्रभाव छात्रों के अध्ययन एवं व्यवहार पर पड़ता है। शिक्षक ही छात्र के चरित्र का निर्माता होता है। जिसे कार्यशाला में शिक्षकों को एकात्म अनुभूति के साथ बताया गया। शिक्षक राष्ट्र का निर्माता है तथा उसके व्यवहार, आचरण एवं क्रिया से समाज एवं राष्ट्र प्रभावित होता है। उन्हें योग के अत्यंत सरल अभ्यास तथा सूक्ष्म व्यायामों से जीवन की कठिनाइयों को सजगतापूर्वक दूर करने के उपाय भी योग आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार तथा शिथलीकरण अभ्यासों के साथ बताए गए।

शिक्षक की उपयोगिता, सामथ्र्य एवं परिस्थितियों से लड़ने की उसकी जिजीविषा के अनेकों उदाहरण देते हुए विवेकानन्द केन्द्र की राष्ट्रीय साहित्य सेवा प्रकल्प कन्याकुमारी की सदस्या अपर्णा पालकर द्वारा शिक्षकों को रोल माॅडल बनने की प्रेरणा दी तथा शिक्षक एवं विद्यार्थी के बीच तनाव के स्थान पर प्रेम का वातावरण निर्मित करने का भी व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया। केन्द्र की प्रान्त संघटक प्रांजलि येरिकर ने शिक्षकों को उनकी चिंता के क्षेत्र एवं प्रभाव क्षेत्र का अंतर स्पष्ट करते हुए बताया कि वे अपने मन का विस्तार करके छोटी-मोटी समस्याओं से सहज ही निज़ात पा सकते हैं। केन्द्र की नगर संगठक श्वेता टाकलकर ने शिक्षकों के लिए वन भ्रमण का आयोजन किया तथा उन्हें एक्शन गीत के द्वारा कम समय में ही खेल-खेल में कठिन विषयों को बच्चों को समझाने की तकनीक का व्यवहारिक अभ्यास कराया गया। विवेकानन्द केन्द्र की पत्रिका केन्द्र भारती के सह-संपादक उमेश कुमार चैरसिया ने सृजन दण्ड के खेल से जीवन में आने वाली नकारात्मक चीजों का भी सकारात्मक उपयोग की विधा सिखाई तथा अमृतस्य पुत्राः खेल से अपने नामों की सार्थकता तथा उसके महत्व पर प्रकाश डाला।

इस कार्यशाला में सहभागी डाॅ. शमीम अंसारी बताते हैं कि उन्हें इस कार्यशाला में आध्यात्म का सही अर्थों में ज्ञान हुआ तथा योग एवं सूर्यनमस्कार को शिक्षा के साथ जोड़ने का यह अनूठा प्रयोग अत्यंत लाभदायक रहा। डाॅ. प्रवीण शर्मा ने बताया कि इस योग कार्यशाला से समाज के लिए जीने का भाव जाग्रत हुआ है। डाॅ. आदि गर्ग कहते हैं कि पहले योग को केवल व्यायाम के रूप में ही देखते थे किंतु इस योग कार्यशाला में एकात्मभाव की संकल्पना स्पष्ट हुई तथा योग की शक्ति को जानने में सहायता मिली। डाॅ. पवन कुमार दीक्षित बताते हैं कि इस कार्यशाला के उपरांत दिनचर्या में सकारात्मक बदलाव आया है तथा मन के विकास भी दूर हुए हैं। डाॅ. आर के चैधरी ने बताया कि वे इस शिविर में गाए गीत निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें को चरितार्थ करने का प्रयास करेंगे। डाॅ. रवि अरोड़ा कहते हैं कि योगाभ्यास से पूरे दिन शरीर में चुस्ती एवं फुर्ती बनी रहने से मन भी प्रसन्न रहता है तथा चर्चात्मक सत्र काफी लाभदायक रहे। डाॅ. राजेन्द्र सांखला कहते हैं कि इस योग कार्यशाला से जीवन को एक नया आयाम प्राप्त हुआ है तथा नई मान्यताओं एवं संस्कारों का निरूपण जीवन में हुआ है। इनके अतिरिक्त सीमा भगवानी, विजय प्रताप श्रीवास्तव तथा दिनेश सोनी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।

प्राचार्य प्रोफेसर विनोद ककड़िया ने बताया कि यह योग कार्यशाला कई मायनों में सार्थक रही। इससे शिक्षकों को वैलनैस एवं हैपीनेस की वास्तविक संकल्पना स्पष्ट हुई तथा विद्यार्थियों के लिए परीक्षा दें हंसते हंसते कार्यशाला का आयोजन से परीक्षा की संकल्पना, उसके उद्देश्य तथा पढ़ाई के दौरान उत्पन्न होने वाले तनाव के प्रबंधन, समय प्रबंधन, स्मरण शक्ति के गुण यथा संकलन, एकत्रीकरण तथा प्रगटन की बारीकियों से परिचय हुआ। प्रो. ककड़िया ने इस कार्यशाला के महत्व को प्रतिपादित करते हुए बताया कि यह कार्यशाला प्रत्येक महाविद्यालय एवं विद्यालयों के शिक्षकों के लिए आवश्यक है तथा साथ ही इस कार्यशाला का आयोजन अपने संस्थान के विभिन्न शिक्षक सहभागियों के लिए सदैव कराए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस योग कार्यशाला में क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान की ओर से समन्वयन डाॅ. के. चन्द्रशेखर द्वारा किया गया तथा योग कार्यशाला में प्रदर्शन देवांश ओझा द्वारा किया गया। अंत में गजेन्द्र अग्रवाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

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