धर्म सनातन है, वह सभी जाति और देशों में समान रूप से विद्यमान है : भानुदास धाक्रस
बिलासपुर, सितम्बर 12 : विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के अखिल भारतीय महासचिव भानुदास धाक्रस ने कहा कि धर्म सनातन है, कालातीत है। उसे कोई जाति, पंथ या किसी देश की सीमा बांध कर नहीं रख सकती। धर्म सर्वव्यापक है, वह सभी जाति और देशों में समान रूप से विद्यमान है। धर्म के प्रभाव से ही संसार में महान कार्य सिद्ध होते हैं। भानुदासजी विवेकानन्द केन्द्र की बिलासपुर शाखा द्वारा 11 सितम्बर को आयोजित विश्व बंधुत्व दिन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
“धर्म : भारत की आत्मा” इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भानुदासजी ने कहा कि मनुष्य के अंतःकरण में सत्य-असत्य, अच्छे-बुरे का युद्ध राम-रावण की तरह चलता रहता है। यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इस युद्ध में किसको विजयी बनाए। जबतक मनुष्य में धर्म जाग्रत रहता है तबतक सत्य और अच्छाई का विजय होता है। इसलिए इस धर्म को समझना जरुरी है। धर्म ही मनुष्य को चरित्रवान बनाता है। धर्म को धारण करके, धर्म का पालन करके मनुष्य, नर से नारायण बन सकता है। मनु स्मृति के श्लोक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, -
“धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थात धृति, क्षमा, संयम, अस्तेय, शौच (पवित्रता), इन्द्रिय निग्रह, ज्ञान, विद्या, सत्य, क्रोध का त्याग ये धर्म के दस लक्षण हैं। मनुष्य के लिए इन दस गुणों का पालन करना अनिवार्य है, तभी वह धार्मिक है ऐसा कहा जा सकता है। अग्नि का गुण है तेज, प्रकाश और उष्णता देना, इसी तरह वायु का गुणधर्म है सृष्टि में सर्वत्र बहनामनु ने धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच (पवित्रता), इन्द्रिय निग्रह, ज्ञान, विद्या, सत्य, क्रोध का त्याग ये धर्म के दस लक्षण हैं। मानव के लिये इन दस वैश्विक आचार का पालन करना अनिवार्य है, प्राण वायु देना। जल, भूमि, आकाश, नदी, पर्वत, प्रकृति सबका गुणधर्म होता है। सभी अपने धर्म के अनुसार चलते हैं। फिर मनुष्य का धर्म क्या है, यह चिंतन का विषय है।
भानुदासजी ने कहा कि धर्म का वास्तव में कोई रूपरंग दिखाई नहीं देता। पर उसे अनुभव किया जा सकता है। अग्नि की शक्ति उसके तेज, प्रकाश अथवा उष्णता के द्वारा दिखाई देती है, उसी तरह धर्म मनुष्य के सद्कार्यों, विचारों और आचरण द्वारा प्रगट होता है। धर्म की शक्ति प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान होता है। वह शक्ति नित्य सदाचार, तप, संयम और सत्संग से बढ़ता ही रहता है। इसलिए हमें अच्छे कार्यों के नित्य संपर्क में रहना चाहिए।
विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव धाक्रस ने आगे कहा कि प्रत्येक राष्ट्र का अपना लक्ष्य होता है, उसी की पूर्ति के लिए उस राष्ट्र के नागरिकों को प्रयत्न करने होते हैं। स्वामीजी ने कहा है कि हमारे राष्ट्र का प्रयोजन है विश्व का कल्याण, विश्व की शांति। इसलिए अपने राष्ट्र के इस दैवीय लक्ष्य को हमें भलीभांति समझना होगा। इस इस प्रयोजन की सिद्धि कैसे हो सकती है, यह भी हमें समझना होगा। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि धर्म ही भारत की आत्मा है। इस आत्मा के बल पर भारत सामर्थ्यशाली बन सकता है। स्वामीजी ने भारत से आह्वान किया था, “हे भारत! उठो, जागो!! और अपने आध्यात्मिक बल से विश्व विजयी बनों।
अपने भाषण के दौरान भानुदासजी ने स्वामी विवेकानन्द द्वारा शिकागो के विश्वधर्म सम्मलेन का पहला व्याख्यान को पढ़कर सुनाया। तत्पश्चात उस भाषण के मर्म को समझाते हुए उन्होंने बताया कि संसार के सभी मत, पंथ अथवा सम्प्रदाय विभिन्न मार्गों का अनुसरण करते हुए अपने इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं। स्वामीजी ने किसी पंथ की निंदा नहीं की, वरन उन्होंने कहा कि सभी सम्प्रदाय श्रेष्ठतम मार्ग पर चलकर ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
भानुदासजी ने कहा, हमारे देश ने सिखाया है कि मनुष्य अपने अंतःकरण का विकास कर अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और समष्टि के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किस तरह कर सकता है। एक छोटी ईकाई बड़ी ईकाई के लिए स्वयं को अर्पित कर देता है। विश्वकल्याण की भावना से उत्पन्न होनेवाला यह समर्पण भाव वास्तव में धर्म का स्वरूप है। इसलिए हमें अपने अंतःकरण का विस्तार करना चाहिए ताकि हम अपने परिवार, अपना समाज, अपने राष्ट्र और परमात्मा के प्रति एकरूप हो जाएं।
इससे पूर्व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल ने अपने भाषण में कहा कि दुनिया में बहुत सारे ‘डे’ मनाने की होड़ लगी हुई है। 365 दिन कोई न कोई दिवस मनाया जाता है। पर हमारे देश में मनाए जानेवाले दिवस और उत्सव का महत्त्व अन्य से अलग है। जैसे- शिक्षक दिवस में हम अपने शिक्षकों के प्रति आदर व्यक्त करते हैं। हमारी संस्कृति है कि हमने जिनसे भी, जो कुछ प्राप्त करें उनके प्रति अपने को कृतज्ञता का भाव अर्पित करें। मंत्रीजी ने कहा कि विश्वबंधुत्व दिवस ऐसा दिवस है कि इस एक दिवस में सारे विश्व का कल्याण निहित है। यदि सारा संसार विश्वबंधुत्व की भावना रखे तो संसार की सारी समस्या समाप्त हो जाएगी। इसलिए विश्वबंधुत्व की परिकल्पना को दुनिया के पटल पर रखनेवाले स्वामी विवेकानन्द सचमुच हमारे देश के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए महवपूर्ण और आदरणीय है। स्वामी विवेकानन्द की विश्वबंधुत्व की भावना लोगों के हृदय तक पहुंची, इसलिए सबने उनके सम्मान में तालियां बजाई। अग्रवाल ने जोर देकर कहा कि हमारे देश में विश्वबंधुत्व की भावना निहित है इसलिए हम विश्वबंधुत्व दिवस मनाने की पात्रता व साहस रखते हैं।
कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव भानुदास धाक्रस के साथ ही बिलासपुर के महापौर किशोर राय, नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल, विवेकानन्द केन्द्र बिलासपुर के सहनगर संचालक तथा शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. किरण देवरस विराजमान थे। इस दौरान केन्द्र की मध्य प्रान्त संगठक सुश्री रचना जानी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना व केन्द्र परिचय दिया तथा संस्कार वर्ग की छात्रा कुमारी शाम्भवी पागे ने वन्दे मातरम् प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कावेरी दाभोलकर ने तथा डॉ. उल्लास वारे ने आभार व्यक्त किया।
बिलासपुर, सितम्बर 12 : विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के अखिल भारतीय महासचिव भानुदास धाक्रस ने कहा कि धर्म सनातन है, कालातीत है। उसे कोई जाति, पंथ या किसी देश की सीमा बांध कर नहीं रख सकती। धर्म सर्वव्यापक है, वह सभी जाति और देशों में समान रूप से विद्यमान है। धर्म के प्रभाव से ही संसार में महान कार्य सिद्ध होते हैं। भानुदासजी विवेकानन्द केन्द्र की बिलासपुर शाखा द्वारा 11 सितम्बर को आयोजित विश्व बंधुत्व दिन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
“धर्म : भारत की आत्मा” इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भानुदासजी ने कहा कि मनुष्य के अंतःकरण में सत्य-असत्य, अच्छे-बुरे का युद्ध राम-रावण की तरह चलता रहता है। यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इस युद्ध में किसको विजयी बनाए। जबतक मनुष्य में धर्म जाग्रत रहता है तबतक सत्य और अच्छाई का विजय होता है। इसलिए इस धर्म को समझना जरुरी है। धर्म ही मनुष्य को चरित्रवान बनाता है। धर्म को धारण करके, धर्म का पालन करके मनुष्य, नर से नारायण बन सकता है। मनु स्मृति के श्लोक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, -
“धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थात धृति, क्षमा, संयम, अस्तेय, शौच (पवित्रता), इन्द्रिय निग्रह, ज्ञान, विद्या, सत्य, क्रोध का त्याग ये धर्म के दस लक्षण हैं। मनुष्य के लिए इन दस गुणों का पालन करना अनिवार्य है, तभी वह धार्मिक है ऐसा कहा जा सकता है। अग्नि का गुण है तेज, प्रकाश और उष्णता देना, इसी तरह वायु का गुणधर्म है सृष्टि में सर्वत्र बहनामनु ने धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच (पवित्रता), इन्द्रिय निग्रह, ज्ञान, विद्या, सत्य, क्रोध का त्याग ये धर्म के दस लक्षण हैं। मानव के लिये इन दस वैश्विक आचार का पालन करना अनिवार्य है, प्राण वायु देना। जल, भूमि, आकाश, नदी, पर्वत, प्रकृति सबका गुणधर्म होता है। सभी अपने धर्म के अनुसार चलते हैं। फिर मनुष्य का धर्म क्या है, यह चिंतन का विषय है।
भानुदासजी ने कहा कि धर्म का वास्तव में कोई रूपरंग दिखाई नहीं देता। पर उसे अनुभव किया जा सकता है। अग्नि की शक्ति उसके तेज, प्रकाश अथवा उष्णता के द्वारा दिखाई देती है, उसी तरह धर्म मनुष्य के सद्कार्यों, विचारों और आचरण द्वारा प्रगट होता है। धर्म की शक्ति प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान होता है। वह शक्ति नित्य सदाचार, तप, संयम और सत्संग से बढ़ता ही रहता है। इसलिए हमें अच्छे कार्यों के नित्य संपर्क में रहना चाहिए।
विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव धाक्रस ने आगे कहा कि प्रत्येक राष्ट्र का अपना लक्ष्य होता है, उसी की पूर्ति के लिए उस राष्ट्र के नागरिकों को प्रयत्न करने होते हैं। स्वामीजी ने कहा है कि हमारे राष्ट्र का प्रयोजन है विश्व का कल्याण, विश्व की शांति। इसलिए अपने राष्ट्र के इस दैवीय लक्ष्य को हमें भलीभांति समझना होगा। इस इस प्रयोजन की सिद्धि कैसे हो सकती है, यह भी हमें समझना होगा। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि धर्म ही भारत की आत्मा है। इस आत्मा के बल पर भारत सामर्थ्यशाली बन सकता है। स्वामीजी ने भारत से आह्वान किया था, “हे भारत! उठो, जागो!! और अपने आध्यात्मिक बल से विश्व विजयी बनों।
अपने भाषण के दौरान भानुदासजी ने स्वामी विवेकानन्द द्वारा शिकागो के विश्वधर्म सम्मलेन का पहला व्याख्यान को पढ़कर सुनाया। तत्पश्चात उस भाषण के मर्म को समझाते हुए उन्होंने बताया कि संसार के सभी मत, पंथ अथवा सम्प्रदाय विभिन्न मार्गों का अनुसरण करते हुए अपने इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं। स्वामीजी ने किसी पंथ की निंदा नहीं की, वरन उन्होंने कहा कि सभी सम्प्रदाय श्रेष्ठतम मार्ग पर चलकर ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
भानुदासजी ने कहा, हमारे देश ने सिखाया है कि मनुष्य अपने अंतःकरण का विकास कर अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और समष्टि के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किस तरह कर सकता है। एक छोटी ईकाई बड़ी ईकाई के लिए स्वयं को अर्पित कर देता है। विश्वकल्याण की भावना से उत्पन्न होनेवाला यह समर्पण भाव वास्तव में धर्म का स्वरूप है। इसलिए हमें अपने अंतःकरण का विस्तार करना चाहिए ताकि हम अपने परिवार, अपना समाज, अपने राष्ट्र और परमात्मा के प्रति एकरूप हो जाएं।
इससे पूर्व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल ने अपने भाषण में कहा कि दुनिया में बहुत सारे ‘डे’ मनाने की होड़ लगी हुई है। 365 दिन कोई न कोई दिवस मनाया जाता है। पर हमारे देश में मनाए जानेवाले दिवस और उत्सव का महत्त्व अन्य से अलग है। जैसे- शिक्षक दिवस में हम अपने शिक्षकों के प्रति आदर व्यक्त करते हैं। हमारी संस्कृति है कि हमने जिनसे भी, जो कुछ प्राप्त करें उनके प्रति अपने को कृतज्ञता का भाव अर्पित करें। मंत्रीजी ने कहा कि विश्वबंधुत्व दिवस ऐसा दिवस है कि इस एक दिवस में सारे विश्व का कल्याण निहित है। यदि सारा संसार विश्वबंधुत्व की भावना रखे तो संसार की सारी समस्या समाप्त हो जाएगी। इसलिए विश्वबंधुत्व की परिकल्पना को दुनिया के पटल पर रखनेवाले स्वामी विवेकानन्द सचमुच हमारे देश के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए महवपूर्ण और आदरणीय है। स्वामी विवेकानन्द की विश्वबंधुत्व की भावना लोगों के हृदय तक पहुंची, इसलिए सबने उनके सम्मान में तालियां बजाई। अग्रवाल ने जोर देकर कहा कि हमारे देश में विश्वबंधुत्व की भावना निहित है इसलिए हम विश्वबंधुत्व दिवस मनाने की पात्रता व साहस रखते हैं।
कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव भानुदास धाक्रस के साथ ही बिलासपुर के महापौर किशोर राय, नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल, विवेकानन्द केन्द्र बिलासपुर के सहनगर संचालक तथा शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. किरण देवरस विराजमान थे। इस दौरान केन्द्र की मध्य प्रान्त संगठक सुश्री रचना जानी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना व केन्द्र परिचय दिया तथा संस्कार वर्ग की छात्रा कुमारी शाम्भवी पागे ने वन्दे मातरम् प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कावेरी दाभोलकर ने तथा डॉ. उल्लास वारे ने आभार व्यक्त किया।
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