संकुचन कभी भी ‘विस्तार’ का अंग न बनें : भानुदासजी
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के राष्ट्रीय महासचिव श्री भानुदास धाक्रस ने कहा कि माननीय एकनाथजी रानडे के जीवन को अधिक निकटता से समझना है तो ‘केन्द्र प्रार्थना’ के मर्म को समझना होगा। केन्द्र प्रार्थना का प्रत्येक पद मा.एकनाथजी के जीवन संकल्प, कार्य और समर्पण को दर्शाता है। भानुदासजी 19 नवम्बर को साधना दिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे।
भानुदासजी ने आगे कहा कि मनुष्य का व्यक्तित्व, कृर्तत्व और नेतृत्व यह समाज से प्राप्त होता है। व्यक्ति को सम्मान, पगार और समझ भी समाज से ही प्राप्त होता है। एक अर्थों में केजी से पीजी तक समाज ही व्यक्ति के विकसित होने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए समाज को श्रेष्ठ और उदात्त जीवन मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए हम सबको समाज को संगठित करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि समाज को संगठित करने के लिए सबसे आवश्यक है- ‘हमारा समाज के प्रति दृष्टिकोण’। समाज के लिए कार्य करते समय हमारी भावना कैसी है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। बचपन से युवावस्था तक हम समाज से लेते हैं। समाज हमें पोषित करता है, हमें सक्षम बनाता है। इसलिए जब हम सक्षम बन जाते हैं, क्षमतावान हो जाते हैं तो हमारा दायित्व है कि हम समाज को अधिक मात्रा में प्रदान करें- “जीवने यावदादानं, स्यात् प्रदानं ततोधिकम”। केन्द्र प्रार्थना का यही संदेश है।
भानुदासजी ने कहा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति के गुणों को पहचान कर देशहित में उसका उपयोग करना चाहिए। हमारे केन्द्र कार्य के व्यवस्थाओं में ‘विस्तार’ का बड़ा महत्त्व है। विस्तार में योग वर्ग, संस्कार वर्ग, केन्द्र वर्ग और स्वाध्याय वर्ग कितने चल रहे हैं, कैसे चल रहे हैं। इन वर्गों में कितने लोग शामिल होते हैं। संख्यात्मक और गुणात्मक दृष्टि से इसका आकलन होना चाहिए। यदि विस्तार में हमारी कार्यपद्धति ठीक से नहीं चल रही है। कभी कभी शुरू रहती है, कभी बंद हो जाती है। ऐसी स्थिति को बदलना होगा, क्योंकि विस्तार का तात्पर्य “विस्तारित” होना है। संकुचन कभी भी विस्तार का अंग नहीं बने, इसका चिंतन प्रत्येक को करना होगा। जब अपने विस्तार में भारत विश्वगुरु बनेगा, समझिए कि भारत देश में विश्वगुरु बन रहा है। इसलिए अपने-अपने विस्तार में “विश्वगुरु भारत” का वातावरण बनाएं। यह तभी संभव है जब हम स्वामी विवेकानन्दजी के विचारों को प्रत्येक घर तक पहुंचाएंगे। आप केवल स्वामीजी के विचारों को पहुंचा दीजिए, वे स्वयं देशकार्य में लग जाएंगे।
भानुदासजी ने जोर देकर कहा कि विश्वगुरु भारत का स्वप्न देखनेवाले प्रत्येक देशवासी को देशकार्य में अपनी भूमिका को देखना होगा। उन्होंने कहा कि अपनी भूमिका पर जब चिंतन होगा तब अपने में अधिक सुधार की संभावना रहती है। इसलिए स्वामीजी के विचार प्रकाश में अपनेआप का आकलन करना आवश्यक है। समाज के लिए कार्यरत अनेक बार अहंकार आता है कि हम देश के लिए कार्य कर रहे हैं। इसलिए नित्य अपना चिंतन होना चाहिए कि मेरा कार्य मेरा कर्तव्य है। हमारे जीवन में कर्तव्य का बोध सदैव रहे, पर कार्यकर्ता के लिए ‘कर्ता’ के भाव को त्यागना बहुत आवश्यक है।
इससे पहले कार्यकर्ताओं ने विस्तारशः केन्द्र प्रार्थना के 14 पदों पर प्रसंग नाट्य प्रस्तुत किए।
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के राष्ट्रीय महासचिव श्री भानुदास धाक्रस ने कहा कि माननीय एकनाथजी रानडे के जीवन को अधिक निकटता से समझना है तो ‘केन्द्र प्रार्थना’ के मर्म को समझना होगा। केन्द्र प्रार्थना का प्रत्येक पद मा.एकनाथजी के जीवन संकल्प, कार्य और समर्पण को दर्शाता है। भानुदासजी 19 नवम्बर को साधना दिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे।
भानुदासजी ने आगे कहा कि मनुष्य का व्यक्तित्व, कृर्तत्व और नेतृत्व यह समाज से प्राप्त होता है। व्यक्ति को सम्मान, पगार और समझ भी समाज से ही प्राप्त होता है। एक अर्थों में केजी से पीजी तक समाज ही व्यक्ति के विकसित होने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए समाज को श्रेष्ठ और उदात्त जीवन मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए हम सबको समाज को संगठित करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि समाज को संगठित करने के लिए सबसे आवश्यक है- ‘हमारा समाज के प्रति दृष्टिकोण’। समाज के लिए कार्य करते समय हमारी भावना कैसी है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। बचपन से युवावस्था तक हम समाज से लेते हैं। समाज हमें पोषित करता है, हमें सक्षम बनाता है। इसलिए जब हम सक्षम बन जाते हैं, क्षमतावान हो जाते हैं तो हमारा दायित्व है कि हम समाज को अधिक मात्रा में प्रदान करें- “जीवने यावदादानं, स्यात् प्रदानं ततोधिकम”। केन्द्र प्रार्थना का यही संदेश है।
भानुदासजी ने कहा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति के गुणों को पहचान कर देशहित में उसका उपयोग करना चाहिए। हमारे केन्द्र कार्य के व्यवस्थाओं में ‘विस्तार’ का बड़ा महत्त्व है। विस्तार में योग वर्ग, संस्कार वर्ग, केन्द्र वर्ग और स्वाध्याय वर्ग कितने चल रहे हैं, कैसे चल रहे हैं। इन वर्गों में कितने लोग शामिल होते हैं। संख्यात्मक और गुणात्मक दृष्टि से इसका आकलन होना चाहिए। यदि विस्तार में हमारी कार्यपद्धति ठीक से नहीं चल रही है। कभी कभी शुरू रहती है, कभी बंद हो जाती है। ऐसी स्थिति को बदलना होगा, क्योंकि विस्तार का तात्पर्य “विस्तारित” होना है। संकुचन कभी भी विस्तार का अंग नहीं बने, इसका चिंतन प्रत्येक को करना होगा। जब अपने विस्तार में भारत विश्वगुरु बनेगा, समझिए कि भारत देश में विश्वगुरु बन रहा है। इसलिए अपने-अपने विस्तार में “विश्वगुरु भारत” का वातावरण बनाएं। यह तभी संभव है जब हम स्वामी विवेकानन्दजी के विचारों को प्रत्येक घर तक पहुंचाएंगे। आप केवल स्वामीजी के विचारों को पहुंचा दीजिए, वे स्वयं देशकार्य में लग जाएंगे।
भानुदासजी ने जोर देकर कहा कि विश्वगुरु भारत का स्वप्न देखनेवाले प्रत्येक देशवासी को देशकार्य में अपनी भूमिका को देखना होगा। उन्होंने कहा कि अपनी भूमिका पर जब चिंतन होगा तब अपने में अधिक सुधार की संभावना रहती है। इसलिए स्वामीजी के विचार प्रकाश में अपनेआप का आकलन करना आवश्यक है। समाज के लिए कार्यरत अनेक बार अहंकार आता है कि हम देश के लिए कार्य कर रहे हैं। इसलिए नित्य अपना चिंतन होना चाहिए कि मेरा कार्य मेरा कर्तव्य है। हमारे जीवन में कर्तव्य का बोध सदैव रहे, पर कार्यकर्ता के लिए ‘कर्ता’ के भाव को त्यागना बहुत आवश्यक है।
इससे पहले कार्यकर्ताओं ने विस्तारशः केन्द्र प्रार्थना के 14 पदों पर प्रसंग नाट्य प्रस्तुत किए।
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