कन्याकुमारी में विवेकानन्द शिला स्मारक के 50वें वर्ष के अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र ‘एक भारत विजयी भारत’ के अन्तर्गत राष्ट्र-व्यापी महासम्पर्क का कार्य 2 सितम्बर 2019 से प्रारम्भ करने जा रहा है।कन्याकुमारी में विवेकानन्द शिला स्मारक के 50वें वर्ष के अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र ‘एक भारत विजयी भारत’ के अन्तर्गत राष्ट्र-व्यापी महासम्पर्क का कार्य 2 सितम्बर 2019 से प्रारम्भ करने जा रहा है। विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष निवेदिता भिड़े जी ने जानकारी दी कि इस सम्पर्क कार्य का शुभारम्भ महामहिम राष्ट्रपति से 2 सितम्बर को विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय अधिकारियों द्वारा उन्हें राष्ट्रपति भवन में सम्पर्क करके किया जायेगा। उसके पश्चात अखिल भारतीय अधिकारी उप राष्ट्रपति तथा प्रधनमन्त्री को सम्पर्क करेंगे। उसके बाद प्रत्येक राज्य के राज्यपाल एवं मुख्यमन्त्री और राज्य के प्रत्येक क्षेत्र तथा समाज के गणमान्य लोगों से सम्पर्क कर उनको स्वामी विवेकानन्द के सन्देश, विवेकानन्द शिला स्मारक की प्रेरणादायी गाथा और विवेकानन्द केन्द्र की गतिविधियों से अवगत कराया जायेगा। साथ ही विवेकानंद के विचारों से परिचित कराया जाएगा।
निवेदिता भिड़े जी ने बताया कि यह संपर्क कार्यक्रम 2 सितंबर 2019 से शुरू होकर वर्ष भर चलेगा। केंद्र के 1000 से अधिक प्रकल्पों से जुड़े हुए 20 हजार से अधिक कार्यकर्ता समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों के बीच जाकर उनसे संपर्क करेंगे। कार्यक्रम के तहत कम से कम 30 लाख लोगों से संपर्क का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष भर संपर्क कार्यक्रम की समाप्ति के बाद दिल्ली अथवा कन्याकुमारी में एक वृहद कार्यक्रम की भी रूपरेखा तैयार की जा रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष निवेदिता भिड़े के अलावा उपाध्यक्ष वी बालाकृष्ण, महासचिव भानुदास धाक्रस, संयुक्त महासचिव रेखा दवे, संयुक्त महासचिव किशोर टोकेकर उपस्थित रहे।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल की गाथा
स्वामी विवेकानन्द ने दिनांक 25 ,26 एवं 27 दिसम्बर 1892 को कन्याकुमारी में समुद्र स्थित शिला पर बैठकर ध्यान किया था। भारत की उस अन्तिम शिला पर बैठकर उन्होंने अपने जीवन के ध्येय को प्राप्त किया था और निर्णय लिया कि वे भारत के खोये हुये गौरव को पुनः वापस लाने के लिये कार्य करेंगे। 1963 में स्वामी विवेकानन्द की जन्म शताब्दी मनाने के समय ऐसा निर्णय लिया कि उनके स्मरण में उस शिला पर जिसका राष्ट्रीय इतिहास में महान महत्व है, एक स्मारक का निर्माण किया जाये।
विशालकाय समस्याओं को पार करके एकता और सार्थकता का सन्देश देता हुआ यह स्मारक जो शिला पर निर्मित हुआ उसका पचासवां वर्ष शुरू हो रहा है। इसकी अद्वितीय कथा से यह लोगों से आह्वान करती है कि राष्ट्रहित के लिये प्रादेशिक, राजनीतिक एवं छोटे छोटे भेद-भावों को भूलकर हमें ऊपर उठना है. कन्याकुमारी में स्थित विवेकानन्द शिला पर निर्मित यह स्मारक, अपने-आप में एक ऐसा अद्वितीय स्मारक है जिसके निर्माण का संकल्प लोगों द्वारा किया गया तथा सम्पूर्ण देशवासियों के सहयोग से इसे बनाया गया।
इस स्मारक की प्रथम विलक्षणता यह है कि यह देश में निर्मित पहला स्मारक है जिसमें उस काल के दिल्ली में उपस्थित 323 सांसदों ने दल के रंग-रूपों को भूलते हुये इसके निर्माण के लिये आग्रह किया।
दान राशि से बनी है शिला
स्मारक की दूसरी विलक्षणता है कि विवेकानन्द स्मारक के निर्माण के लिये उस समय की 1 प्रतिशत वरिष्ठ जनसंख्या ने एक एक रुपये के दान से 85 लाख धनराशि का योगदान दिया। तीसरी विलक्षणता शिला पर निर्मित इस भव्य स्वामी विवेकानन्द के स्मारक की यह है कि (1964-70) की निर्माण अवधि में लगभग देश के सभी राज्यों की सरकार ने चाहे उसमें किसी भी दल का शासन हो, इसमें कम से कम एक लाख रुपये की धनराशि दान दी। केन्द्रिय सरकार का भी रुपये 15 लाख का इसमें योगदान रहा। इस प्रकार विवेकानन्द शिला स्मारक सही रूप से राष्ट्रीय स्मारक है जिसे भारत के उस महान देशभक्त संन्यासी के स्मरण में बनाया गया।स्मारक की चैथी विशेषता यह है कि अजंता, एलोरा, पल्लव, चोला, बेलूड. मठ और अनेक सुन्दर और अद्वितीय शिल्प कलाकृृतियों का संगम है।
यह एकमेव स्मारक है कि जिससे 1972 में विवेकानन्द केन्द्र एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन ने जन्म लिया। युवक और युवती, स्वामी विवककानन्द के शब्दों में – ‘पवित्रता की ज्वाला से दैदीप्तमान, ईश्वरीय शाश्वत शक्ति में अटूट विश्वास रखनेवाले, निर्धनों, पतित तथा पददलितों के प्रति सहानुभूति के कारण मृृगेन्द्र का धैर्य धारण कर’ – अपना जीवन ‘जीवनव्रती’ के रूप में राष्ट्र को समर्पित कर संगठन के कार्यकर्ता बनेंगे। उनको प्रशिक्षित करके देश के विभिन्न क्षेत्रों में भेजा जाता है। वहां वे जिनको समाजहित में कार्य करने की रुचि है ऐसे लोगो के साथ विभिन्न सेवा गतिविधियों का संचालन करते हैं।
आज 1005 स्थानों पर विवेकानन्द केन्द्र का सेवा कार्य देशभर में चल रहा है। केन्द्र योग, शिक्षा, ग्रामीण विकास, युवा विकास, बच्चों का सर्वांगीण विकास, नैसर्गिक संसाधनों का विकास, ग्रामीण एवं जनजाति क्षेत्र में सांस्कृृतिक शोधकार्य, प्रकाशन आदि का कार्य कर रहा है। भारतीय सरकार ने विवेकानन्द केन्द्र को 2015 वर्ष के ‘गांधी शान्ति पुरस्कार’ देकर इसके कार्य को सम्मानित किया है।
स्मारक के निर्माण में भारतभर से इतने लोगों का सहयोग रहा कि इसका उद्घाटन कार्यक्रम 2 सितम्बर 1970 से प्रारम्भ होकर दो महीना चलता रहा। भारत के लोगों ने एक होकर इस स्मारक का सफलतापूर्वक निर्माण किया। इस भव्य स्मारक का निर्माण सघन सम्पर्क के कारण हो सका, इसलिये इसके 50वे वर्ष में यह सोचा गया कि ‘एक भारत विजयी भारत’ शीर्षक के अन्तर्गत राष्ट्रव्यापी सम्पर्क किया जाये।
निवेदिता भिड़े जी ने बताया कि यह संपर्क कार्यक्रम 2 सितंबर 2019 से शुरू होकर वर्ष भर चलेगा। केंद्र के 1000 से अधिक प्रकल्पों से जुड़े हुए 20 हजार से अधिक कार्यकर्ता समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों के बीच जाकर उनसे संपर्क करेंगे। कार्यक्रम के तहत कम से कम 30 लाख लोगों से संपर्क का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष भर संपर्क कार्यक्रम की समाप्ति के बाद दिल्ली अथवा कन्याकुमारी में एक वृहद कार्यक्रम की भी रूपरेखा तैयार की जा रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष निवेदिता भिड़े के अलावा उपाध्यक्ष वी बालाकृष्ण, महासचिव भानुदास धाक्रस, संयुक्त महासचिव रेखा दवे, संयुक्त महासचिव किशोर टोकेकर उपस्थित रहे।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल की गाथा
स्वामी विवेकानन्द ने दिनांक 25 ,26 एवं 27 दिसम्बर 1892 को कन्याकुमारी में समुद्र स्थित शिला पर बैठकर ध्यान किया था। भारत की उस अन्तिम शिला पर बैठकर उन्होंने अपने जीवन के ध्येय को प्राप्त किया था और निर्णय लिया कि वे भारत के खोये हुये गौरव को पुनः वापस लाने के लिये कार्य करेंगे। 1963 में स्वामी विवेकानन्द की जन्म शताब्दी मनाने के समय ऐसा निर्णय लिया कि उनके स्मरण में उस शिला पर जिसका राष्ट्रीय इतिहास में महान महत्व है, एक स्मारक का निर्माण किया जाये।
विशालकाय समस्याओं को पार करके एकता और सार्थकता का सन्देश देता हुआ यह स्मारक जो शिला पर निर्मित हुआ उसका पचासवां वर्ष शुरू हो रहा है। इसकी अद्वितीय कथा से यह लोगों से आह्वान करती है कि राष्ट्रहित के लिये प्रादेशिक, राजनीतिक एवं छोटे छोटे भेद-भावों को भूलकर हमें ऊपर उठना है. कन्याकुमारी में स्थित विवेकानन्द शिला पर निर्मित यह स्मारक, अपने-आप में एक ऐसा अद्वितीय स्मारक है जिसके निर्माण का संकल्प लोगों द्वारा किया गया तथा सम्पूर्ण देशवासियों के सहयोग से इसे बनाया गया।
इस स्मारक की प्रथम विलक्षणता यह है कि यह देश में निर्मित पहला स्मारक है जिसमें उस काल के दिल्ली में उपस्थित 323 सांसदों ने दल के रंग-रूपों को भूलते हुये इसके निर्माण के लिये आग्रह किया।
दान राशि से बनी है शिला
स्मारक की दूसरी विलक्षणता है कि विवेकानन्द स्मारक के निर्माण के लिये उस समय की 1 प्रतिशत वरिष्ठ जनसंख्या ने एक एक रुपये के दान से 85 लाख धनराशि का योगदान दिया। तीसरी विलक्षणता शिला पर निर्मित इस भव्य स्वामी विवेकानन्द के स्मारक की यह है कि (1964-70) की निर्माण अवधि में लगभग देश के सभी राज्यों की सरकार ने चाहे उसमें किसी भी दल का शासन हो, इसमें कम से कम एक लाख रुपये की धनराशि दान दी। केन्द्रिय सरकार का भी रुपये 15 लाख का इसमें योगदान रहा। इस प्रकार विवेकानन्द शिला स्मारक सही रूप से राष्ट्रीय स्मारक है जिसे भारत के उस महान देशभक्त संन्यासी के स्मरण में बनाया गया।स्मारक की चैथी विशेषता यह है कि अजंता, एलोरा, पल्लव, चोला, बेलूड. मठ और अनेक सुन्दर और अद्वितीय शिल्प कलाकृृतियों का संगम है।
यह एकमेव स्मारक है कि जिससे 1972 में विवेकानन्द केन्द्र एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन ने जन्म लिया। युवक और युवती, स्वामी विवककानन्द के शब्दों में – ‘पवित्रता की ज्वाला से दैदीप्तमान, ईश्वरीय शाश्वत शक्ति में अटूट विश्वास रखनेवाले, निर्धनों, पतित तथा पददलितों के प्रति सहानुभूति के कारण मृृगेन्द्र का धैर्य धारण कर’ – अपना जीवन ‘जीवनव्रती’ के रूप में राष्ट्र को समर्पित कर संगठन के कार्यकर्ता बनेंगे। उनको प्रशिक्षित करके देश के विभिन्न क्षेत्रों में भेजा जाता है। वहां वे जिनको समाजहित में कार्य करने की रुचि है ऐसे लोगो के साथ विभिन्न सेवा गतिविधियों का संचालन करते हैं।
आज 1005 स्थानों पर विवेकानन्द केन्द्र का सेवा कार्य देशभर में चल रहा है। केन्द्र योग, शिक्षा, ग्रामीण विकास, युवा विकास, बच्चों का सर्वांगीण विकास, नैसर्गिक संसाधनों का विकास, ग्रामीण एवं जनजाति क्षेत्र में सांस्कृृतिक शोधकार्य, प्रकाशन आदि का कार्य कर रहा है। भारतीय सरकार ने विवेकानन्द केन्द्र को 2015 वर्ष के ‘गांधी शान्ति पुरस्कार’ देकर इसके कार्य को सम्मानित किया है।
स्मारक के निर्माण में भारतभर से इतने लोगों का सहयोग रहा कि इसका उद्घाटन कार्यक्रम 2 सितम्बर 1970 से प्रारम्भ होकर दो महीना चलता रहा। भारत के लोगों ने एक होकर इस स्मारक का सफलतापूर्वक निर्माण किया। इस भव्य स्मारक का निर्माण सघन सम्पर्क के कारण हो सका, इसलिये इसके 50वे वर्ष में यह सोचा गया कि ‘एक भारत विजयी भारत’ शीर्षक के अन्तर्गत राष्ट्रव्यापी सम्पर्क किया जाये।
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