स्वामी विवेकानंद केंद्र ने 13 जुलाई, 2019 को चंडीगढ़ के सेक्टर 10 स्थित डीएवी कॉलेज में "शिक्षक से गुरु तक की यात्रा" पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में प्रख्यात शिक्षाविदों और शिक्षकों ने भाग लिया। चंडीगढ,पंचकुला और मोहाली के विभिन्न स्कूलों,कॉलेजों के 61प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यशाला के दौरान चंडीगढ,पंचकुला और मोहाली प्रख्यात शिक्षाविद् मौजूद थे।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई. तदोपरांत शिवम् जी द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया। नवीन कौशिक जी ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यशाला की कार्यवाही शुरू की। कार्यशाला के पहले सत्र में प्रोफ.के एस आर्या ने एक शिक्षक और एक गुरु के बीच के अंतर को खूबसूरती से समझाया। शिक्षक और गुरु के बीच में अंतर समझते हुए आर्या जी ने सभी श्रोताओं को तीन बिंदुओं पर विशेष ध्यान कराया।
१. तन पूर्ति
२. मन पूर्ति एवं
३. आत्मा पूर्ति
उन्होंने बताया की तन पूर्ति से सुख मिलता है, मन पूर्ति से शांति मिलती है और आत्मा पूर्ति से आनंद मिलता है। एक शिक्षक सिर्फ सुख दे सकता है, परन्तु एक गुरु, सुख के साथ साथ शांति और आनंद का आभास भी देता है। यानि की एक गुरु तन, मन और आत्मा की भी तृप्ति करता है। तदुपरांत प्रोफ. सहजपाल जी ने भी उक्त विषय का उद्देश्य बताया और अपने विचार प्रकट किये जिसके साथ ही प्रथम सत्र का समापन हुआ।
दूसरे सत्र में सभी प्रतिभागियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया। प्रत्येक समूह को इस बात पर चर्चा करने की सलाह दी गई थी कि एक शिक्षक से एक गुरु बनाने में योगदान कैसे दिया जा सकता है। सभी प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से चर्चा में भाग लिया और अपने विचार दिए। प्रत्येक समूह को एक समूह नेता चुना गया जो समूह की संक्षिप्त चर्चा को सभी प्रतिभागियों के सामने प्रस्तुत कर सके।
चर्चा सत्र समाप्त होने के बाद, समूह के नेताओं को चर्चा का सारांश प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उनके द्वारा प्रस्तुत कुछ बिंदु निम्नलिखित थे:
1. लगभग सभी शिक्षकों ने बिगड़ते सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर दिया।
2. लगभग सभी शिक्षकों ने बिगड़ते सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया। यह सुझाव दिया गया था कि प्रत्येक स्कूल में एक निश्चित प्रार्थना समय, योग समय, ध्यान का समय होना चाहिए।
3. शिक्षकों ने छात्रों के बीच व्यवहार में सुधार लाने पर भी जोर दिया। यह सुझाव दिया गया था कि एक शिक्षक को एक रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए। एक छात्र हमेशा अपने शिक्षक की नकल करता है, खासकर प्राथमिक स्तर पर।
4. कुछ शिक्षकों ने यह भी बताया कि शिक्षा विशुद्ध रूप से नौकरी उन्मुख नहीं होनी चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य मानव निर्माण होना चाहिए न कि मशीन निर्माण । उन्होंने शिक्षा प्रणाली और नौकरी की आवश्यकताओं के बीच अंतर को पाटने के लिए भी इशारा किया।
सभी प्रतिभागियों के विचार प्रकट कर लेने पर श्री पियूष पुंज जी, प्रोफ. नंदिता सिंह ने पूरी चर्चा का समापन किया। चर्चा समापन के बाद श्री भानुदास जी, (अखिल भारतीय महासचिव, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी) ने समापन मार्गदर्शन प्रस्तुत किया। समापन मार्गदर्शन में उन्होंने भी कार्यशाल के उद्देश्य पर काफी रौशनी डाली। दूसरे सत्र की समापन के पश्चात् तीसरे सत्र में अलका गौरी जी ने सुक्ष्म व्यायाम एवं ओमकार ध्यान कराया। ओमकार ध्यान के पश्चात् कर्नल कौशल जी कृतज्ञता ज्ञापन प्रस्तुत किया और सभी का धन्यवाद किया।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई. तदोपरांत शिवम् जी द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया। नवीन कौशिक जी ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और कार्यशाला की कार्यवाही शुरू की। कार्यशाला के पहले सत्र में प्रोफ.के एस आर्या ने एक शिक्षक और एक गुरु के बीच के अंतर को खूबसूरती से समझाया। शिक्षक और गुरु के बीच में अंतर समझते हुए आर्या जी ने सभी श्रोताओं को तीन बिंदुओं पर विशेष ध्यान कराया।
१. तन पूर्ति
२. मन पूर्ति एवं
३. आत्मा पूर्ति
उन्होंने बताया की तन पूर्ति से सुख मिलता है, मन पूर्ति से शांति मिलती है और आत्मा पूर्ति से आनंद मिलता है। एक शिक्षक सिर्फ सुख दे सकता है, परन्तु एक गुरु, सुख के साथ साथ शांति और आनंद का आभास भी देता है। यानि की एक गुरु तन, मन और आत्मा की भी तृप्ति करता है। तदुपरांत प्रोफ. सहजपाल जी ने भी उक्त विषय का उद्देश्य बताया और अपने विचार प्रकट किये जिसके साथ ही प्रथम सत्र का समापन हुआ।
दूसरे सत्र में सभी प्रतिभागियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया। प्रत्येक समूह को इस बात पर चर्चा करने की सलाह दी गई थी कि एक शिक्षक से एक गुरु बनाने में योगदान कैसे दिया जा सकता है। सभी प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से चर्चा में भाग लिया और अपने विचार दिए। प्रत्येक समूह को एक समूह नेता चुना गया जो समूह की संक्षिप्त चर्चा को सभी प्रतिभागियों के सामने प्रस्तुत कर सके।
चर्चा सत्र समाप्त होने के बाद, समूह के नेताओं को चर्चा का सारांश प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उनके द्वारा प्रस्तुत कुछ बिंदु निम्नलिखित थे:
1. लगभग सभी शिक्षकों ने बिगड़ते सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर दिया।
2. लगभग सभी शिक्षकों ने बिगड़ते सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया। यह सुझाव दिया गया था कि प्रत्येक स्कूल में एक निश्चित प्रार्थना समय, योग समय, ध्यान का समय होना चाहिए।
3. शिक्षकों ने छात्रों के बीच व्यवहार में सुधार लाने पर भी जोर दिया। यह सुझाव दिया गया था कि एक शिक्षक को एक रोल मॉडल के रूप में कार्य करना चाहिए। एक छात्र हमेशा अपने शिक्षक की नकल करता है, खासकर प्राथमिक स्तर पर।
4. कुछ शिक्षकों ने यह भी बताया कि शिक्षा विशुद्ध रूप से नौकरी उन्मुख नहीं होनी चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य मानव निर्माण होना चाहिए न कि मशीन निर्माण । उन्होंने शिक्षा प्रणाली और नौकरी की आवश्यकताओं के बीच अंतर को पाटने के लिए भी इशारा किया।
सभी प्रतिभागियों के विचार प्रकट कर लेने पर श्री पियूष पुंज जी, प्रोफ. नंदिता सिंह ने पूरी चर्चा का समापन किया। चर्चा समापन के बाद श्री भानुदास जी, (अखिल भारतीय महासचिव, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी) ने समापन मार्गदर्शन प्रस्तुत किया। समापन मार्गदर्शन में उन्होंने भी कार्यशाल के उद्देश्य पर काफी रौशनी डाली। दूसरे सत्र की समापन के पश्चात् तीसरे सत्र में अलका गौरी जी ने सुक्ष्म व्यायाम एवं ओमकार ध्यान कराया। ओमकार ध्यान के पश्चात् कर्नल कौशल जी कृतज्ञता ज्ञापन प्रस्तुत किया और सभी का धन्यवाद किया।
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