कन्याकुमारी । भारतमाता के प्रति अगाध प्रेम को संस्कार वर्ग के माध्यम से प्रगट करने वाले विवेकानन्द केन्द्र के बाल-तरूण कार्यकर्ताओं का शिविर हाल ही में दिनांक २३ से २९ मई को सम्पन्न हुआ । इस अखिल भारतीय संस्कार वर्ग प्रशिक्षण शिविर में ६४ भाई तथा ५२ बहनें, इस प्रकार कुल ११६ शिविरार्थी देश के विभिन्न राज्यों से सहभागी हुए ।
आगामी वर्ष में स्वामी विवेकानन्द की १५०वीं जयन्ती को ध्यान में रखते हुए इस शिविर का थीम "सदा विवेकानन्दमयम्" रखा गया । इस शिविर में बहनों तथा भाइयों के दो मंडल बनाये गये थे । बहनों के मंडल का नाम "भारतमाता" मंडल तथा भाइयों के मंडल का नाम "रामकृष्ण मंडल" रखा गया । स्वामी विवेकानन्द का भारतमाता के प्रति अद्वितीय प्रेम था, साथ ही देवी के तीन रूप - भवतारिणी माँ काली, माँ क्षीर भवानी तथा देवी कन्याकुमारी के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी । इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतमाता मंडल में तीन गणों के नाम क्रमश: माँ भवतारिणी, माँ क्षीर भवानी तथा देवी कन्याकुमारी रखा गया । इस क्रम में भाइयों के रामकृष्ण मंडल में भी तीन गण बनाए गये, स्वामी विवेकानन्द, नरेन्द्रनाथ तथा वीरेश्वर, ये तीनों गण स्वामीजी के नाम पर आधारित थे ।
शिविर का औपचारिक उद्घाटन का कार्यक्रम विवेकानन्दपुरम् स्थित विवेकानन्द मंडपम् में दिनांक २३ मई २०१२ को प्रात: ६:०० बजे सम्पन्न हुआ । इस उद्घाटन समारम्भ में शिविरार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय महासचिव मा. भानुदासजी धाक्रस ने कन्याकुमारी स्थल की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानन्द की भारतभक्ति से सबको परिचित कराया । इसके पूर्व २२ मई को शिविर के शिविर प्रमुख श्री रवि नायडु ने शिविर की प्रस्तावना दी, जिसमें विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय संयुक्त महासचिव मा. रेखा दीदी बतौर शिविर अधिकारी के रूप में उपस्थित थे । शिविर में कुल ७ व्याखान हुए, जिसके विषय एवं वक्ता इस प्रकार हैं -
(१) भारतमाता जगद्गुरु : श्री विश्वास लपालकर (महाराष्ट्र प्रान्त संगठक)
(२) स्वामी विवेकानन्द - हमारे प्रेरणास्रोत : मा. हनुमन्तरावजी (अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष)
(३) वैज्ञानिक दृष्टि : मा. निवेदिता दीदी (अखिल भारतीय उपाध्यक्षा)
(४) माननीय एकनाथजी : मा. रेखा दीदी (अखिल भारतीय संयुक्त महासचिव)
(५) संगठित कार्य की आवश्यकता : सुश्री मीरा कुलकर्णी (असम प्रान्त संगठक)
(६) धर्म : मा. निवेदिता दीदी
(७) कार्यकर्ता : श्री रवि नायडू (उडिसा प्रान्त संगठक)
व्याख्यान के पश्चात प्रतिदिन मंथन सत्र में संस्कार वर्गों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक योजनाओं पर गणश: विमर्श होता था । संस्कार वर्ग क्यों और कैसे ?, संस्कार वर्ग में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि, संस्कार वर्ग की रचना, संस्कार वर्ग का सम्पर्क तन्त्र, कार्यकर्ता का विकास तथा कार्यकर्ता भाव का विकास, इन विषयों पर मंथन हुआ । इसी प्रकार संस्कार वर्ग के वर्गशिक्षकों में आवश्यक निपुणता को सहज, सुगम बनाने की दृष्टि से दोपहर के सत्र में प्रतिदिन "नैपुण्य वर्ग" का आयोजन किया गया । जिसका विषय क्रमश: कहानी, खेल, गीत, प्रार्थना का अनुशासन, सामूहिक सूर्यनमस्कार तथा विवेक वाणी रखा गया ।
सूर्यनमस्कार, आज्ञाभ्यास, मैदानी खेल, ओजस्वी गीत, प्रेरक प्रसंग तथा जयघोष का सामूहिक दर्शन प्रतिदिन शाम को संस्कार वर्ग में होता था । भजन संध्या के बाद रात्रि में प्रेरणा से पुनरुत्थान में प्रतिदिन प्रेरक व्हिडियों क्लिपींग चलचित्र के माध्यम से दिखाया गया ।
इसी सत्र में श्री लखेश चंद्रवन्शी (नागपुर) ने "परिव्राजक संन्यासी स्वामी विवेकानन्द" के भारत भ्रमण की कथा यात्रा की श्रृंखला को प्रतिदिन प्रसंगरूप में प्रस्तुत किया । संस्कार वर्ग को प्रभावी बनाने के लिए समस्त कौशलों एवं योजनाओं पर सामूहिक चिन्तन एवं प्रशिक्षण का यह अखिल भारतीय आयोजन था । विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष मा. बालकृष्णनजी ने शिविर समापन के आहुति सत्र में दैवीय गुणों का संवर्धन कर भारतमाता को जगद्गुरु बनाने के लिए अपने हृदय को "सदा विवेकानन्दमयम्" के भाव से प्रज्वलित रखने की प्रेरणा दी । इस शिविर में सभी शिविरार्थियों ने १०८ सूर्यनमस्कार की आहुति देकर स्वामी विवेकानन्द को नमन किया । २९ मई को विवेकानन्द शिलास्मारक का शिविरार्थियों ने दर्शन किया । अपने-अपने नगर स्थानों को संस्कार वर्ग के माध्यम से "सदा विवेकानन्दमयम्" करने का सभी शिविरार्थियों ने संकल्प लिया ।
आगामी वर्ष में स्वामी विवेकानन्द की १५०वीं जयन्ती को ध्यान में रखते हुए इस शिविर का थीम "सदा विवेकानन्दमयम्" रखा गया । इस शिविर में बहनों तथा भाइयों के दो मंडल बनाये गये थे । बहनों के मंडल का नाम "भारतमाता" मंडल तथा भाइयों के मंडल का नाम "रामकृष्ण मंडल" रखा गया । स्वामी विवेकानन्द का भारतमाता के प्रति अद्वितीय प्रेम था, साथ ही देवी के तीन रूप - भवतारिणी माँ काली, माँ क्षीर भवानी तथा देवी कन्याकुमारी के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी । इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतमाता मंडल में तीन गणों के नाम क्रमश: माँ भवतारिणी, माँ क्षीर भवानी तथा देवी कन्याकुमारी रखा गया । इस क्रम में भाइयों के रामकृष्ण मंडल में भी तीन गण बनाए गये, स्वामी विवेकानन्द, नरेन्द्रनाथ तथा वीरेश्वर, ये तीनों गण स्वामीजी के नाम पर आधारित थे ।
शिविर का औपचारिक उद्घाटन का कार्यक्रम विवेकानन्दपुरम् स्थित विवेकानन्द मंडपम् में दिनांक २३ मई २०१२ को प्रात: ६:०० बजे सम्पन्न हुआ । इस उद्घाटन समारम्भ में शिविरार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय महासचिव मा. भानुदासजी धाक्रस ने कन्याकुमारी स्थल की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानन्द की भारतभक्ति से सबको परिचित कराया । इसके पूर्व २२ मई को शिविर के शिविर प्रमुख श्री रवि नायडु ने शिविर की प्रस्तावना दी, जिसमें विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय संयुक्त महासचिव मा. रेखा दीदी बतौर शिविर अधिकारी के रूप में उपस्थित थे । शिविर में कुल ७ व्याखान हुए, जिसके विषय एवं वक्ता इस प्रकार हैं -
(१) भारतमाता जगद्गुरु : श्री विश्वास लपालकर (महाराष्ट्र प्रान्त संगठक)
(२) स्वामी विवेकानन्द - हमारे प्रेरणास्रोत : मा. हनुमन्तरावजी (अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष)
(३) वैज्ञानिक दृष्टि : मा. निवेदिता दीदी (अखिल भारतीय उपाध्यक्षा)
(४) माननीय एकनाथजी : मा. रेखा दीदी (अखिल भारतीय संयुक्त महासचिव)
(५) संगठित कार्य की आवश्यकता : सुश्री मीरा कुलकर्णी (असम प्रान्त संगठक)
(६) धर्म : मा. निवेदिता दीदी
(७) कार्यकर्ता : श्री रवि नायडू (उडिसा प्रान्त संगठक)
व्याख्यान के पश्चात प्रतिदिन मंथन सत्र में संस्कार वर्गों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक योजनाओं पर गणश: विमर्श होता था । संस्कार वर्ग क्यों और कैसे ?, संस्कार वर्ग में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि, संस्कार वर्ग की रचना, संस्कार वर्ग का सम्पर्क तन्त्र, कार्यकर्ता का विकास तथा कार्यकर्ता भाव का विकास, इन विषयों पर मंथन हुआ । इसी प्रकार संस्कार वर्ग के वर्गशिक्षकों में आवश्यक निपुणता को सहज, सुगम बनाने की दृष्टि से दोपहर के सत्र में प्रतिदिन "नैपुण्य वर्ग" का आयोजन किया गया । जिसका विषय क्रमश: कहानी, खेल, गीत, प्रार्थना का अनुशासन, सामूहिक सूर्यनमस्कार तथा विवेक वाणी रखा गया ।
सूर्यनमस्कार, आज्ञाभ्यास, मैदानी खेल, ओजस्वी गीत, प्रेरक प्रसंग तथा जयघोष का सामूहिक दर्शन प्रतिदिन शाम को संस्कार वर्ग में होता था । भजन संध्या के बाद रात्रि में प्रेरणा से पुनरुत्थान में प्रतिदिन प्रेरक व्हिडियों क्लिपींग चलचित्र के माध्यम से दिखाया गया ।
इसी सत्र में श्री लखेश चंद्रवन्शी (नागपुर) ने "परिव्राजक संन्यासी स्वामी विवेकानन्द" के भारत भ्रमण की कथा यात्रा की श्रृंखला को प्रतिदिन प्रसंगरूप में प्रस्तुत किया । संस्कार वर्ग को प्रभावी बनाने के लिए समस्त कौशलों एवं योजनाओं पर सामूहिक चिन्तन एवं प्रशिक्षण का यह अखिल भारतीय आयोजन था । विवेकानन्द केन्द्र के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष मा. बालकृष्णनजी ने शिविर समापन के आहुति सत्र में दैवीय गुणों का संवर्धन कर भारतमाता को जगद्गुरु बनाने के लिए अपने हृदय को "सदा विवेकानन्दमयम्" के भाव से प्रज्वलित रखने की प्रेरणा दी । इस शिविर में सभी शिविरार्थियों ने १०८ सूर्यनमस्कार की आहुति देकर स्वामी विवेकानन्द को नमन किया । २९ मई को विवेकानन्द शिलास्मारक का शिविरार्थियों ने दर्शन किया । अपने-अपने नगर स्थानों को संस्कार वर्ग के माध्यम से "सदा विवेकानन्दमयम्" करने का सभी शिविरार्थियों ने संकल्प लिया ।
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