Thursday, July 9, 2020

योग-विश्व को भारतीय उपहार

विवेकानंद केन्द्र मध्य प्रांत द्वारा आयोजित  पाक्षिक विमर्श -  योग-विश्व को भारतीय उपहार (समय: 21जून 2020 दिन रविवार एवं सूर्य ग्रहण सायं 4 से 5:30 )
मुख्य वक्ता - आ. श्री हनुमंत राव जी* ( योग मर्मज्ञ, प्रशासनिक सचिव एवं अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष, विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी)

भूमिका :-
आ. नारायण घोष जी, विभाग प्रमुख जबलपुर। आपने भगवान रामकृष्ण के प्रिय मंत्र को याद करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन एवं योग विज्ञान को आज ही के दिन सम्पूर्ण विश्व ने इसे अंगीकृत भी किया। योग – जीव (व्यष्टि) का परमात्मा (समष्टि) से मिल जाना है और यही मानव जीवन का लक्ष्य भी है।

श्रद्धेय हनुमंत राव जी ने विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी के सुरम्य वादियों से हमें आज के दिवस कि महत्ता बताई एवं सम्बोधन में कहा कि यह एक महान शास्त्र है। जो सम्पूर्ण विश्व को जीवन का विशाल मार्गदर्शन कर रहा है ताकि सृष्टि का संतुलन न बिगड़े। सृष्टि में लाखों जीव, अरबों प्राणी, वनस्पति आदि है जो एक ही परिवार है, आज कल हम इसे Cosmic House कहते हैं।
इसे ही हम वयं बंधु – अयं बंधु, अर्थात् विश्व भी एक घर है जिसमें हमारी पारिवारिक- समरसता, सामन्जस्यता को पहचान वास्तविक अनुभूति को अभिव्यक्त करना ही योग दर्शन रहा। सभी दृश्य-अदृश्य जीव जन्तु एक वैश्विक तन्तु से जुड़े है को पक्षियों के दृष्टांत के माध्यम से स्पष्ट किया।
 विवेकानन्द जी ने अपने प्रवास के अनुभव Shall lndia die? Then from the world all spirituality will be extinct, all moral perfection will be extinct से यह बताने का प्रयास किया गया कि भारतीय विचार धारा के नष्ट होने से विश्व में competition बढ़ेगा। इसलिए योग जीवन की समस्त बाधाओं का समाधान है, अतः हमारा व्यवहार ऐसा हो जिससे सब में आनन्द की लहर प्रवाहित हो। यही मानव जीवन का लक्ष्य भी है। हम भौतिक वस्तुओं के सुख सुविधा में आनन्द खोजते हैं, दरअसल यह आनन्द, अन्दर से आता है, जिसके जागरण का एक  मात्र उपाय योग है। बाहरी भोग विलास और फ़ास्ट  जीवन शैली ने हमारे मूल्यों का अवमूल्यन कर दिया है।
बाहरी चकाचौंध ने मन को अशांत कर दिया है योग ही मन को प्रशांत कर सकता है, को उदाहरणों से स्पष्ट किया। योग - मन के विचलन, चंचलता, दौड़ते मेघ या मनोवेग कि गति को एवं इंद्रियों के वेग को शांत करता है। प्रशांत करता है।
योग के अभ्यास से -शिक्षक, डाक्टर, पेन्टर, वैज्ञानिक आदि अपने-अपने क्षेत्रों में उत्तम एवं गुणवत्ता युक्त कार्य करते हैं और समाज उन पर विश्वास करता है।
चोर योग के अभ्यास से संस्कारित हो चोरी करना छोड़ देता है।
योग के विस्फोट से विश्व भारतीय दर्शन को अपनाने लगा है।
योग से हमारे प्रक्षिप्त गुण विकसित होने लगे हैं,इसे ही Personality development कहते हैं। आत्मविश्वास जागता है। इसी से Time management होता है।
योग से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अशुद्धियों का प्रतिस्थापन (Replacement) होता है। फलस्वरूप मन की उर्जा एवं एकाग्रता बढ़ती है, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। उर्जा का संकलन एवं पोषण बढ़ेगा तो उसका management भी बढ़ेगा।
अंतिम चरण में उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन शास्त्र सभी काल में सजीव एवं प्रासंगिक (Relevant) रहेगा। सभी संघर्षों का समाधान करेगा, यही भारतीय संस्कृति का अद्भुत आध्यात्मिक विज्ञान और भविष्य के लिए रक्षा कवच भी है।
कोरोना रूपी महामारी ने मरण का/ भय का/ वातावरण बना दिया है सब का समाधान योग ही है, बताया।
योग इंद्रियों की भूख को शांत /कमजोर करता है। और आत्मबल को बढ़ाता है।
श्वास का वेग योग से नियंत्रित हो सहज ही प्राणायाम बन जाएगा। और हमारी पूरी Physiology System व्यवस्थित हो जायेगी।
योग से हार्मोन का स्त्रावन संतुलन ठीक होता है, शुचिता, पवित्रता, ओज शक्ति, immune system आदि ठीक हो कर आनन्दमय जीवन प्रारम्भ होता है।
ये सब विश्व को भारत का उपहार (Gift) है। भारतीय योग दर्शन इसका माध्यम बना अतः हमें इस पर गर्व है। भारत माता की जय |
आभार:
श्री श्रवण पाठक जी द्वारा आभार प्रदर्शन किया गया। शांति मंत्र से विमर्श पूर्ण हुआ। कार्यक्रम का सञ्चालन मोहन चक्र वैश्य जी ने किया। कार्यक्रम में सभी प्लेटफॉर्म पर उपस्थिति 1150 से अधिक रही।

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