‘जीवन में मुस्कान’ थीम पर आधारित विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर की ओर से योग प्रशिक्षण सत्र का आरंभ शहीद भगत सिंह उद्यान, वैशाली नगर में हुआ। प्रथम चरण में सामान्य वर्ग एवं वरिष्ठ वर्ग में अभ्यास कराए गए। शिथलीकरण व्यायामों के साथ वरिष्ठ वर्ग में सूक्ष्म व्यायाम तथा चेयर सूर्यनमस्कार का अभ्यास कराया गया। क्रीड़ा योग के तहत हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की खेल हुआ।
केन्द्र के नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इस योग सत्र में वरिष्ठजन के लिए विशेष अभ्यास कराए जा रहे हैं जिनके द्वारा दिनचर्या में होने वाली जोड़ों एवं मांसपेशियों की सामान्य तकलीफों का समाधान मिलता है। योग सत्र में उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे शहीद भगत सिंह उद्यान समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र गांधी का योग की पुस्तक भेंट कर सम्मान किया गया।
योग सत्र आयोजन में डाॅ. श्याम भूतड़ा, कुशल उपाध्याय, सीए भारत भूषण बन्सल, राकेश शर्मा, नीलम अग्रवाल, जुगराज मीणा, मनोज बीजावत, राखी वर्मा, डाॅ. बी एस गहलोत, रामचन्द्र यादव, कुसुम गौतम, याशिका यादव, राजरानी कुशवाहा आदि का सहयोग रहा।
प्राणिक ऊर्जा का स्रोत है सूर्यनमस्कार
वनस्पति जगत, प्राणी जगत तथा संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। घेरण्ड संहिता में वर्णित सूर्यनमस्कार बारह आसनों का ऐसा सम्मिश्रण है जिसके अभ्यास से समस्त चराचर जगत में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा से न केवल शरीर अपितु मन, बुद्धि एवं प्राण भी ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाते हैं। यह अभ्यास मन को साधने का कार्य करता है जिससे स्थिरता पूर्वक आसन एवं मंथरता पूर्वक प्राणायाम करने की क्षमता विकसित होती है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डॉ0 स्वतन्त्र शर्मा ने केन्द्र की अजमेर शाखा की ओर से शहीद भगत सिंह उद्यान, वैशाली नगर चल रहे योग प्रशिक्षण के दूसरे दिन के सत्र में व्यक्त किए।
आज साधकों को चरणबद्ध रूप से श्वासों की गति को नियंत्रित करते हुए मंत्रोच्चार के साथ सूर्यनमस्कार का प्रशिक्षण दिया गया। डॉ. शर्मा ने बताया कि मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का माध्यम योग है। इसके अभाव में हमारे मन में नैसर्गिक रूप से नकारात्मक विचार घर करने लगते हैं और यह प्रकृति का स्वभाविक नियम भी है, इसलिए हमें योग अभ्यास की समाहित अवस्था को शेष दिन की गतिविधियों के लिए व्युत्थान अवस्था में बदलने की कला आनी चाहिए। जीवन जीने की यह कला ही योग कहलाती है।
आसनों के अभ्यास से स्थिर होता है मन
आसनों से शरीर के जोड़ लचीले होते हैं। मांसपेशियों की सुदृढ़ता बढ़ती है तथा साथ ही मन भी स्थिर होने लगता है। मन की चंचलता कम होने से चित्त की वृत्तियाँ निर्मूल होती हैं। शांत मन के लिए श्वास की मंथरता आवश्यक है। इसके लिए देर तक एक मुद्रा में बैठना आवश्यक होता है जिसका अभ्यास केवल आसन सिद्धि से ही हो सकता है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डाॅ स्वतन्त्र शर्मा ने शहीद भगत सिंह उद्यान, वैशाली नगर में चल रहे योग प्रशिक्षण सत्र के दौरान व्यक्त किए।
केन्द्र के नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इस योग सत्र में वरिष्ठजन के लिए विशेष अभ्यास कराए जा रहे हैं जिनके द्वारा दिनचर्या में होने वाली जोड़ों एवं मांसपेशियों की सामान्य तकलीफों का समाधान मिलता है। योग सत्र में उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे शहीद भगत सिंह उद्यान समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र गांधी का योग की पुस्तक भेंट कर सम्मान किया गया।
योग सत्र आयोजन में डाॅ. श्याम भूतड़ा, कुशल उपाध्याय, सीए भारत भूषण बन्सल, राकेश शर्मा, नीलम अग्रवाल, जुगराज मीणा, मनोज बीजावत, राखी वर्मा, डाॅ. बी एस गहलोत, रामचन्द्र यादव, कुसुम गौतम, याशिका यादव, राजरानी कुशवाहा आदि का सहयोग रहा।
प्राणिक ऊर्जा का स्रोत है सूर्यनमस्कार
वनस्पति जगत, प्राणी जगत तथा संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। घेरण्ड संहिता में वर्णित सूर्यनमस्कार बारह आसनों का ऐसा सम्मिश्रण है जिसके अभ्यास से समस्त चराचर जगत में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा से न केवल शरीर अपितु मन, बुद्धि एवं प्राण भी ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाते हैं। यह अभ्यास मन को साधने का कार्य करता है जिससे स्थिरता पूर्वक आसन एवं मंथरता पूर्वक प्राणायाम करने की क्षमता विकसित होती है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डॉ0 स्वतन्त्र शर्मा ने केन्द्र की अजमेर शाखा की ओर से शहीद भगत सिंह उद्यान, वैशाली नगर चल रहे योग प्रशिक्षण के दूसरे दिन के सत्र में व्यक्त किए।
आज साधकों को चरणबद्ध रूप से श्वासों की गति को नियंत्रित करते हुए मंत्रोच्चार के साथ सूर्यनमस्कार का प्रशिक्षण दिया गया। डॉ. शर्मा ने बताया कि मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का माध्यम योग है। इसके अभाव में हमारे मन में नैसर्गिक रूप से नकारात्मक विचार घर करने लगते हैं और यह प्रकृति का स्वभाविक नियम भी है, इसलिए हमें योग अभ्यास की समाहित अवस्था को शेष दिन की गतिविधियों के लिए व्युत्थान अवस्था में बदलने की कला आनी चाहिए। जीवन जीने की यह कला ही योग कहलाती है।
आसनों के अभ्यास से स्थिर होता है मन
आसनों से शरीर के जोड़ लचीले होते हैं। मांसपेशियों की सुदृढ़ता बढ़ती है तथा साथ ही मन भी स्थिर होने लगता है। मन की चंचलता कम होने से चित्त की वृत्तियाँ निर्मूल होती हैं। शांत मन के लिए श्वास की मंथरता आवश्यक है। इसके लिए देर तक एक मुद्रा में बैठना आवश्यक होता है जिसका अभ्यास केवल आसन सिद्धि से ही हो सकता है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी राजस्थान के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डाॅ स्वतन्त्र शर्मा ने शहीद भगत सिंह उद्यान, वैशाली नगर में चल रहे योग प्रशिक्षण सत्र के दौरान व्यक्त किए।
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