11/1/2013
नई दिल्ली। स्वामी विवेकानन्द सार्धशती समारोह का आज नई दिल्ली स्थित
सीरीफोर्ट सभागार में 2400 गण्मान्य नागरिकों की उपस्थिति में भव्य रूप से
उदघाटन किया गया। स्वामी विवेकानन्द जी के जन्म के 150वें वर्ष के उपलक्ष्य
में समस्त भारत में साल भर चलने वालेकार्यक्रमों की प्रस्तावना इस समारोह
में रखी गई। समारोह समिति की अध्यक्षा माता अमृतानन्दमयी देवी जी इस
कार्यक्रम में मुख्य अध्यक्षा के नाते मंच पर उपस्थित थीं। मंच पर उपस्थित
महानुभावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक माननीय
मोहनराव भागवत जी, श्री जयेश गाधिया जी, राष्ट्र सेविका समिति की निर्वतमान
अध्यक्षा प्रोमिला ताई मेढे जी, मा. परमेषवरन जी, डा. प्रणव पांड्या जी
स्वामी ऋतंम्भरानन्द जी, आचार्य मुनि पुल्केष जी, स्वामी निखिलानन्द जी तथा
श्री ए. देशपाण्डे जी विराजमान थे।
माननीय मोहनराव जी भागवत ने अपने उदबोधन में
विवेकानन्द जी के जीवन पर बोलते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी की जो
दृष्टि थी तथा जो उन्होंने बताया वही कार्य आज संघ कर रहा है।
उन्होंने बताया कि स्वामी जी ने कभी जाति, धर्म, समुदाय के आधार पर मनुष्य
में भेद नहीं किया। स्वामी जी के विचारों से अवगत करवाते हुए उन्होंने
बताया कि आपमें शक्ति होना बहुत आवष्यक है, सनातन धर्म में होते हुए भी
स्वामी जी ने लोगों से कहा था कि गीता पढ़ने से अच्छा है फुटबाल खेलना,
जिससे शरीर बलषाली हो। उनका मानना था कि कमजोर राष्ट्र कभी सर उठाकर नहीं
खड़ा हो सकता इसलिए दुनिया के सामने अपने को सक्षम बनाने के लिए हमें शक्ति
अर्जित करनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि हम भटकी हुए दुनिया के साथ
खड़े होने के लिए नहीं हैं अपितु भटकी हुए दुनिया को सही मार्ग व दिषा देने
के लिए बने हैं। उन्होंने बताया आज की सभी समस्याओं का हल व्यक्ति के
संकल्प पर टिका है, बुराइयों को समाप्त करने की पहल मैंने करनी है, अपने
परिवार से करनी है, ऐसा संकल्प सभी लेते हैं तो कोई समस्या नहीं रहेगी।
उन्होंने बताया कि विवेकानन्द जी की 150वीं वर्षगांठ का यह वर्ष देष के
उत्थान तथा दुनिया को दिशा देने का महत्वपूर्ण वर्ष होगा तथा भारत जागो
विश्व जगाओ के उदगोष को सार्थक करेगा।
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