Wednesday, December 23, 2020

विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, छत्तीसगढ़ विभाग द्वारा योग सत्र


विवेकानंद  केंद्र  कन्याकुमारी, छत्तीसगढ़ विभाग द्वारा  10  दिवसीय योग सत्र का आयोजन दिनांक 24.08.2020 से 02.09.2020 तक किया गया, जिसमे कुल 327 पंजीयन हुए थे तथा नियमित 130 लोगों ने भाग लिया l दिनांक 03.09.20 से यह योग वर्ग आज दिनांक 29.09.2020 तक प्रतिदिन चल रहा है एवं आगे भी चलता रहेगा l

प्रत्येक दिन योग सत्र का प्रारम्भ तीन ओमकार एवं प्रार्थना से होता था l योग सत्र में 10 दिन तक शिथलीकरण व्यायाम (एस्थिर दौड़, मुख धोती, कमर का व्यायाम, हैण्ड रोटेशन, गर्दन का व्यायाम, व्याघ्र तनन, पवन मुक्तासन, पूर्ण शावासन), सूर्य नमस्कार, विभिन्न आसन, प्राणायाम, अष्टांग योग की संकल्पना, प्रश्नोत्त्तर,अंत में पतंजलि वंदना, एवं  शांति मंत्र होता था l

दस दिवसीय योग सत्र के दौरान प्रत्येक दिवस के संकल्पना सत्र की विस्तृत जानकरी निम्नलिखित है -  

योग सत्र प्रथम दिवस में  उद्घाटन सत्र हुआ, जिसमें विवेकानंद केंद्र बिलासपुर के नगर संचालक एडवोकेट श्री प्रतीक शर्मा जी का मार्गदर्शन मिला, उन्होंने कहा कि योग जो है वह मनुष्य को जोड़ने वाली एक प्रक्रिया है । और इस जोड़ने की प्रक्रिया के कारण ही हम पने मन से , हम अपने समाज से, और राष्ट्र से जुड़ रहे हैं । और इन सब से जुड़ने के कारण ही हम अपने आप को स्वस्थ रखें, यह योग का मुख्य उद्देश्य  है ।

इसके पश्चात योग की संकल्पना में विवेकानंद केंद्र मध्य प्रांत के कार्यालय प्रमुख आदरणीय गोविंद खांडेकर जी का मार्गदर्शन मिला । जिसका विषय था योग क्या है ? और क्या नहीं ? उन्होंने संस्कृत का सूत्र  ।। युज्यते अनेन इति योगः ।। की व्याख्या करते हुए कहा कि कहा योग का अर्थ है जोड़ना,  सर्वप्रथम अपने मन, बुद्धि, शरीर से जुड़ना, एवं अपने आप से जुड़ते हुए अपने परिवार से जुड़ना, परिवार से जुड़ते  हुए समाज से जुड़ना, और राष्ट्र से जुड़ना एवं संपूर्ण चराचर सृष्टि से एकत्व की अनुभूति  करना ही योग का मुख्य उद्देश्य है  । उन्होंने  उदाहरण देते हुए कहा कि परिवार में जिस तरह से परिवार का मुखिया अपने परिवार को जोड़ने के लिए कहीं ना कहीं स्वयं का त्याग करता है , ऐसे ही हमारे जीवन में इस को जोड़ते हुए कही ना कहीं त्याग बहुत आवश्यक है  । और यहीं से ही योग प्रारंभ हो जाता है , अंत में उन्होंने अखंड मंडलाकार की व्याख्या करते हुए बताया ।। अखंड मंडलाकारं व्याप्तमं येन चराचरम्  तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवै नमः ।। मैं, परिवार, समाज , और संपूर्ण संपूर्ण चराचर सृष्टी से जुड़ना अखंड मंडलाकार  में बताया गया है ।

  योग सत्र द्वितीय दिवस  

 योग सत्र के दूसरे दिन का  विषय था, योगश्चित्त वृत्ति निरोधः और मनः प्रश्मनो पायः योगः इत्यभिधीयते ।। जिस पर विवेकानंद केंद्र इंदौर विभाग संगठन श्री अतुल जी गभने का मार्गदर्शन मिला , उन्होंने योग की व्याख्या करते हुए बताया कि अपना विस्तृत स्वरूप इस समाज और राष्ट्र से जुड़ना, और उसके अनुसार व्यवहार करना, योग है । हमारी जो भी गतिविधि हो इस राष्ट्र को ध्यान में रखते हुए हो , तभी हमारे जीवन में योग होगा  । उन्होंने अंतः करण चतुष्टय , जिसमे मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार है के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें चित्त की व्याख्या करते हुए कहा कि बाहर से आने वाले प्रभाव के कारण हमारे चित्त पर उसका प्रभाव पड़ रहा है । उस पर नियंत्रण करना आवश्यक है । भगवान राम और महर्षि वशिष्ठ के संवाद को लेते हुए मनः प्रश्मनो पायः योगः इत्यभिधीयते की व्याख्या करते हुए बताया कि मन को शांत करने का उपाय योग है ।

योग सत्र तृतीय दिवस में  योग: कर्मसु कौशलम और समत्वं योग उच्यते  विषय पर विवेकानन्द केंद्र बिलासपुर के संपर्क प्रमुख श्री कैलाश त्यागी जी का मार्गदर्शन हुआ, योग: कर्मसु कौशलम की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारे कर्म की कुशलता तभी होगी, जब हमारे प्रत्येक कार्य में योग  होगा ।  अर्थात हमारा कार्य लोगों को जोड़ने वाला हो,  तोड़ने वाला ना हो । हमारा व्यवहार लोगों को जोड़ने वाला हो । तभी जीवन में योग है । दूसरा उन्होंने समत्वं योग उच्यते की व्याख्या करते हुए कहा कि हम को प्रत्येक परिस्थिति में सम  रहना है । चाहे हमारे जीवन में सुख हो, चाहे दुख हो ,चाहे हम जीवन की कितनी भी ऊंचाइयों पर पहुंच जाएं , चाहे हम कितनी भी विपत्तियों में क्यों ना आ जाए । हमको सम स्थिति में ही रहना है । तभी जीवन में योग होगा ।

योग सत्र चतुर्थ दिवस का विषय था, धर्म चक्र जिस पर विवेकानंद केंद्र छत्तीसगढ़ विभाग के संचालक डॉ किरण देवरस जी का मार्गदर्शन हुआ, उन्होंने बताया कि इस  धर्म चक्र को भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया एवं इस धर्म चक्र का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है ।  यदि हम इस धर्म का पालन करते हैं , तो निश्चित ही हमारा , एवं समाज का पोषण होगा । हम इस समष्टि का पोषित करेंगे तो , यह सारे संसार को पोषित  करेगी । जिसके लिए उन्होंने पंच महायज्ञ की संकल्पना के बारे में बताया,  जो है पितृ यज्ञ , नर यज्ञ , देव यज्ञ ,ऋषि यज्ञ ,और ब्रह्म यज्ञ  । जो व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में इन 5 यज्ञों का पालन करता है , तो निश्चित ही यह समष्टि के कल्याण के लिए उपयोगी है और यह समष्टि हमारा  और संपूर्ण जीव जगत के पोषण में अपना योगदान देगी ।

योग सत्र पंचम दिवस का विषय था , अष्टांग योग के अनुसार 'यम' , जिस  पर मार्गदर्शन करने के लिए विवेकानन्द केंद्र मध्य प्रांत संगठन आदरणीय दीदी का मार्गदर्शन हुआ , उन्होंने कहा 'यम' अर्थात समाज के प्रति हमारा व्यवहार , जिसके अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय ,ब्रह्मचर्य ,और अपरिग्रह आते हैं  । उन्होंने 'यम' के प्रत्येक अंगो का वर्णन करते हुए कहा कि अहिंसा , अर्थात किसी के प्रति हिंसा नहीं करना । हमारा जो भी  व्यवहार हो वह समष्टि के हित में ध्यान रखकर हो और समाज के हित में व्यवहार हो, तो वह अहिंसा के अंतर्गत आती है  । सत्य, जो शाश्वत है, जिसका अस्तित्व है , उसी का ही अनुसरण करना एवं उसके अनुसार अपना व्यवहार करना । 'अस्तेय',  अर्थात चोरी नहीं करना,  जिस पर हमारा  अधिकार नहीं है , उस पर अपना आधिपत्य न जताना ही अस्तेय का पालन करना है । और 'ब्रह्मचर्य 'अर्थात अपने ध्येय की और  ध्यान देने वाला,  अपने उद्देश्य के प्रति सजग रहना ।  फिर अपने उद्देश्य में जो भी बाधा आए , उससे दूर रहना ।  अपरिग्रह  अर्थात अत्यधिक संग्रह न करना ।  उतना ही ग्रहण करना  जितना आवश्यक है । क्योंकि हम देख रहे हैं कि आज समाज में  जो असंतुलन बना हुआ , वह अपरिग्रह के अभाव के कारण  है । इसके लिए आवश्यक है , जितना आवश्यक है उतना ग्रहण करें ।

 योग सत्र षष्ट दिवस में विवेकानन्द केंद्र रायपुर के  सह नगर संचालक श्री सुयश जी शुक्ला का मार्ग दर्शन हुआ । जिनका विषय था,  अष्टांग योग के अनुसार नियम अर्थात हमारा स्वयं के प्रति व्यवहार । जिसके अंतर्गत उन्होंने शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान के बारे में बताया , जो इस प्रकार है :-

"यम वैश्विक मूल है सही बताया जितना आवश्यक हो उतना ही सोचना,एकत्रित करना। शरीर मन आत्मा को कैसे योग के माध्यम से जोड़ना है इस का महत्व बताया। योग दूसरे अंग में आत्म विकास के लिए अनुष्ठान करना,स्वयं अनुशासित होना, संतोष समर्पण से आत्म विकास करना योग साधना के लिए तैयार करने के बारे में बताया । कैसे स्वयं का दृष्टिकोण ठीक कर सकते है,शरीर को निर्मल शुद्ध व्यवस्थित रखना ,शुद्ध,सात्विक,दोष रहित आहार लेने से क्या क्या अनुभूत कर सकते है। भोजन,सुनने,देखने सभी से शुद्ध आहार अंदर तक पहुंचाएंगे वैसा ही हम देगे । अशुद्धियों को दूर करना होगा,क्या लेना है पहचानना होगा ।यदि हमें किसी के प्रति ईर्ष्या हो रही है उस समय उसी के बारे में अच्छा सोचे तो मन शुदध होगा  इसे समाहित करेगे तो आत्म शुद्धि होगी। संतोष उस समय जो संसाधन है उसमे कैसे खुश रहना,जो है उसमे प्रसन्न रहना ,अति की लालसा और समुचित जितनी आवश्यकता है उसमे बारीक लाइन को पहचाना होगा। लालसा,भोगवाद से दूर रह जो आपके पास है उसमे खुश रहना स्वीकार कर,आनंद अनुभूत करना, प्रतिकूल परिस्थिति में भी आनंद की निरंतरता बनाना,संतोष रखते हुए जो है उसमे संतुष्ट रहते हुए कार्य सतत करना और समाज को देने के भाव रखना। प्रत्येक क्षण में प्रसन्न रहना परम संतोष है। योग तप शरीर,मन,वाणी,योग में जो विकार है , दुख सहना भी योग है। मांस पेशीय भी जब खिचाव महसुस करेगी तभी बलवान होगी वैसे ही दुख सह कर हम आनंद प्राप्त कर सकते है।

स्वाध्याय नियमित  जो सुक्ष्मता बताए ऐसे शास्त्रों को पढ़े अध्ययन करें । मानव धर्म सबसे ऊपर है, हमारी संस्कृति है नियमित स्वाध्याय से कैसे आत्मसात कर सकते है। ईश्वर प्रणिधान से तनावों से मुक्त हो,  कैसे आत्मसाक्षात्कार के दर्शन होगे, अहंकार को दूर कर योग के द्वारा संगठन , एकात्म की अनुभूति कर सकते है।

 योग सत्र सप्तम दिवस में  विवेकानन्द केंद्र भोपाल, विभाग प्रमुख श्री मनोज जी गुप्ता का मार्गदर्शन रहा, जिनका विषय था - आसन, प्राणायाम,  प्रत्याहार - उन्होंने पतंजलि योग सूत्र को लेते हुए मार्गदर्शित किया , जो इस प्रकार है :-

आसन :-  ।। स्थिरसुखमासनं ।।

किसी एक स्थिति में सुख पूर्वक बैठने का नाम आसन है ।

 ।। प्रयत्नशैथिल्यानंतसमापत्तिभ्यां ।।

शरीर के स्वाभाविक प्रयत्न है, अर्थात जो स्वाभाविक चंचलता है ,  उसे शिथिल कर अनंत के साथ चिंतन ।

 ।। ततो द्वंद्वानभिघातः ।।

इस प्रकार आसन सिद्ध होने पर , द्वंद्व परम्परा और कुछ विघ्न उत्पन्न नहीं कर सकती ।

 प्राणायाम:-  ।। तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:  ।।

 आसन में सिद्ध होने के बाद श्वास - प्रश्वास दोनों की गति को संयत करना प्राणायाम है ।

 प्रत्याहार:-  ।। स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्यरूपानुकार इवेन्द्रियाणाम प्रत्याहार: ।।

हमारी इंद्रियां  अपने- अपने विषयों को छोड़कर मानो चित्त का स्वरूप ग्रहण करती हैं, प्रत्याहार कहलाता है ।
  

 योग सत्र अष्टम दिवस में विवेकानंद केंद्र मध्य प्रांत प्रमुख, श्री भंवर सिंह राजपूत जी का मार्गदर्शन हुआ, जिनका विषय था धारणा, ध्यान, और समाधि  । जो इस प्रकार है:-

"धारणा

चित मन को स्थिर रखना ही धारणा है , जो विषय है उसी के बारे में कई विचार का अनुसरण करना।

उदहारण  - सीप स्वाति नक्षत्र की पहली बूंद ग्रहण कर के ही मोती बना पाती है । जो वर्ष में एक बार ही होता है। सीप को जब ये आभास होता है कि रोहणी नक्षत्र आ गया है वो वैसे ही तट से समुद्र की सतह पर आ अपना मुख खोल कर पहली बूंद ले वापस तट पर जा मोती बनाने के कार्य में लग जाती है।

एक ही विषय है पर कई विचार का अनुसरण करने का बहुत ही अच्छा है ।

ध्यान :- अनेक विचारो को  दूर कर एक ही विचार को ही पकड़ना उस पर ही अमल करना* ।

उदहारण

हम हनुमान जी की मूर्ति की धारणा करते है । मूर्ति के सामने आसन पर बैठ अपने चित को बांध कर और उनके एक कार्य  उनके द्वारा राम जी के लिए किए गए कार्यों को याद करते है।

 राज योग में एक व्यक्ति काफी लंबे समय से ईश्वर प्राप्ति के लिए बैठ कर एक ही स्थान पर ध्यान करने लगे , उनको दीमक लग गया  ।तब वह से नारद जी को जाते हुए देखा तो उनसे पूछा कि आप कहा जा रहे हो? नारद जी बोले ईश्वर के पास स्वर्ग जा रहा हूं।


दूसरा प्रश्न उसने नारद जी से कहा आप ईश्वर से पूछ कर आना कि वे मुझे कब दर्शन देंगे ?

नारद जी आगे गए तब दूसरा व्यक्ति उछलता कूदता मस्ती में है वो भी नारद जी से वे दो प्रश्न पूछता है जो पहले वाले व्यक्ति ने पूछा था।

नारद जी जब स्वर्ग से लौटे तो

पहले व्यक्ति ने पूछा ईश्वर ने उसके प्रश्न का क्या उत्तर दिया तब नारद जी बोले आपको

अनेक वर्षों तक सात जन्म तक साधना करेगे तब ईश्वर दर्शन होगे।

 तब उसके मन में कुंठा जागृत हुई कि सात जन्म तक ध्यान करना होगा। बहुत ही लंबा समय होगा।

आगे जाने पर नारद जी से दूसरे व्यक्ति ने उत्तर पूछा तब नारद जी बोले आपके घर के आंगन में जो इमली का पेड़ है उस इमली के पेड़ में जितने पत्तों है उतनी तपस्या करनी होगी

तब तत्काल वो बोला बस पत्तों कि संख्या जितनी और मस्ती में झूमने लगा।

तभी आकाश से आकाशवाणी हुई की ईश्वर आपको अभी ही दर्शन देगे।

इसका अभिप्राय यह है कि एक ही विषय की ईश्वर दर्शन अनेक विचार होने के बाद भी ध्यान और ध्येय धारणा समान रही , चित स्थिर रहा ईश्वर दर्शन की कामना में।

दीमक के ढेर पर बैठे व्यक्ति का चित्त स्थिर नहीं था।

ध्यातां मै हूं ध्यान किसका? ईश्वर  कैसे प्राप्त हो? तीनों अवसर से आगे बढ़ेगा तब ही मै और ध्येय का लोप होता है तब ही हम समाधि अवस्था में पहुंचेगे।

तीनों अवस्था को एक साथ देखे एक विषय अनेक विचार ठीक वैसे ही

उदहारण - जैसे बचपन में बालक एक खेल खेलते थे लेंस को सूर्य की रोशनी में रखते थे उस पर अंकित  बिंदु को ऐसे *फोकस* करते है,  कि जैसे ही केंद्रित हो, जल जाती है। ठीक ऐसे ही योग के पांचों अंगो को करने के बाद ये तीनोंधारणा,ध्यान,समाधि को प्राप्त कर सकते है । समाधि में पहुंचने पर दो स्थिति होती है चेतन और अचेतन अवस्था।


उदहारण

भोजन ग्रहण कर रहे है पता होता है भोजन हाथ से तोड़ते उठाते है ,मुंह में डालते है,  दांत से चबा कर खाते है हर अवस्था का एहसास होता है भोजन की विभिन्न क्रियाएं हो रही है , चेतन अवस्था है ।

लेकिन जब गले के नीचे से भोजन उतरता  है,  क्या क्रियाएं चल रही है ? पता नहीं चलता ।

 ये अचेतन अवस्था है।

योग के आनंद को प्राप्त करने के लिए सभी अंगों का एक साथ अनुभव करना होगा।"

 योग सत्र नवम दिवस में  विवेकानंद केंद्र , छत्तीसगढ़ विभाग के संपर्क प्रमुख डॉ. उल्हास वारे जी द्वारा विवेकानंद शिला स्मारक विषय पर मार्गदर्शन किया गया । और  स्मारक निर्माण के समय आने वाली  चुनोतियाँ  अवसर बनी, जिसे एकनाथ जी ने अवसर के रूप में बदल दिया । उस बारे में बताया, एवं द्वितीय चरण विवेकानन्द  केंद्र की गतिविधियों से अवगत कराया गया  ।

योग सत्र दशम दिवस के समापन सत्र में  विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष , माननीय श्री हनुमंत जी राव का मार्गदर्शन रहा , उन्होंने जो कहा वह इस प्रकार है :-

पचास साल पहले आज के दिन ही विवेकानंद शिलास्मारक का उद्घाटन हुआ था। योग प्रशिक्षण  के पश्चात नियमित योग करने के लिए हम सभी प्रतिबद्ध हुए।

विवेकानंद केंद्र की योग पद्धति "अनुसंधान सहित" है। योग का नाम पद्धति सभी के तरीके अलग - अलग है । प्रशिक्षण,नियमित अनुशासित अभ्यास ही मुख्य निचोड़ है। जो दैनिक योग करेंगे, उनकी दैनिक दिनचर्या में और अधिक  सुधार परिवर्तन आएगा, आचरण, शरीर और मन दोनों उपकरणों में सुदृढ़ता, मजबूती स्वस्थ, पवित्रता,स्वछता बढ़ेगी व परिवार,परिसर,समाज,राष्ट्र,के लिए निस्वार्थ भाव से  धर्म कार्य और एक अच्छे कार्य करने के लिए तत्पर और निरंतर प्रयासरत रहे यही *मूल बिंदु* है।

 योग सत्र से जुड़ कर हम  शरीर,मन,योग इंस्ट्रक्टर से,विवेकानंद केंद्र से जुड़ स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनकर शरीर की तत्परता बढ़ाते हुए योग शास्त्र को अपने - अपने घर, अपार्टमेंट, संपर्क स्थान में योग का अनुष्ठान,प्रशिक्षण ले जाए और निश्चित रूप से *एक महान शक्ति* से जुड़े रहने व जोड़ते रहने का प्रयास  करते हुए देवीय गुणों, प्रमाणता,शक्ति ऊर्जा को प्रगट करने में सफल रहेंगे।

परिवर्तन होगा शक्ति का जागृत होना,व्यवहार,संकल्पनाओं में, विचार धाराएं,काम करने का तरीका,प्रतिक्रियाएं बदलेगी और हम पूर्णता की ओर बढ़ेंगे, हमारे जीवन में, मानसिकता में  बदलाव आएगा वो बदलाव से शरीर, मन स्वस्थ रहेगे प्राण शक्ति का प्रवाह संचार होगा।

आदमी अलग हो सकता है, विचार अलग हो सकते है, योग से सभी प्राण शक्ति केंद्रित हो एकात्मकता होती है, साइलेंट रेवोल्यूशन मूक क्रांति होता है हमारे बिना जानकारी से हमारे अंदर बदलाव के लक्षण दिखाए देते है।

आठ लक्षण बदलाव वाले जो दिखाई देते है योग अभ्यास से प्रकट उत्पन्न, अंकुरित हो प्रतिष्ठा प्राप्त करवाने में सहायक रह शरीर में लचीलापन, सुदृढ़ता,जागरूकता बढ़ेगी जिससे मुख में प्रसन्नता का प्रसार होगा,बोलने के बोल में मृदुता,  स्नेह, प्रसन्नता का संचार होगा,नयनों में निर्मलता, शांत` दिखेगी।

हम पूरे कुटुंब, अपनों में, समाज में, राष्ट्र के प्रत्येक जीवों में  प्रेम से अच्छा चरित्र देखेगे, दिशनिर्देशन होगा सभी निरोगी रहेगे।

ये क्रियाएं करने से अपने शरीर की इंद्रियों, इच्छाओं की, विचारो की दौड़  के ऊपर पूर्णतः नियंत्रण  रहेगा साथ साथ शरीर के अंदर का ताप भी नियंत्रित रहेगा,नाडी प्रवाह संतुलित रहेगा, समग्र संतुलन रहेगा हमेशा आनंदित, प्रसन्नचित रहेगा,संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास होगा,बाधाओं को आसानी से पार करने के लिए तैयार रहेगा, यश,प्रतिष्ठा का प्रवाह होगा ।

ऐसा व्यक्ति  will contribute positivity to society और यही आनंदित रहने के लिए राम बाण है।  

महर्षि पतंजलि जी की एक सुंदर प्रस्तुति  ने कहा है सुख के साथ मैत्री करिए, सुख के साथ संतुष्ट रहिए l दु:खी लोगो के प्रति करुणा होनी चाहिए,पुण्य कार्यों के साथ मुदित आनंदित रहे,बुरे कामो के साथ बुराई को दूर रखे,ऐसी मानसिकता विकसित रहेगी तो मन शांत रहेगा और कुटुंब, परिवार, मित्रो के साथ हम स्वयं हमेशा प्रसन्न, आनंदित रहेंगे।


1893 में स्वामी विेकानंद जी ने *शिकागो* में  शानदार उदघोष किया संपूर्ण विश्व में सनातन हिन्दू धर्म , भारत की संस्कृति का प्रचार हुआ, इसके माध्यम से दार्शनिक शास्त्र का दर्शन किया गया।

हम भारतीयों का मनोबल, आत्मबल, आत्म साहस, व्यक्तित्व विकास हुआ ।

आज इस *पुण्य अवसर* पर  हम प्रतिबद्ध, कर्मठ ,कटिबद्ध एवम् संकल्पित हो यथा संभव हर जगह राष्ट्र हित *सर्वोपरि* रख धर्म कार्य करेगे।

 मध्य प्रान्त संगठक आ.रचना दीदी ने बखूबी  केंद्र की  सभी गतिविधियों से अवगत करवाया l

(१) योग सत्र दस दिन का

(२) योग वर्ग  3 September 2020 सुबह 6.30 से 7.30 से नियमित योग वर्ग रहेगा

(३) Certificate course of Six month

(४) Yog  दर्शन  विमर्श सात दिन का

(५) विवेकानंद केंद्र एक पारिवारिक संगठन है। *डोनेशन राष्ट्र कार्य हेतु* जीवन पर्यन्त कार्यकर्ताओं के लिए परिपोषक योजना आर्थिक सहयोग l

(६) युवा भारती subscribe कर लेख पढ़ने मिलेगा सदस्यता की सौभाग्यता लेने बावत अवगत करवाया।

(७) योग प्रशिक्षक बनने के लिए सात दिनों का प्रशिक्षण वर्ग २३ सितंबर से ऑनलाइन होगा।

(८) १२ सितंबर को शाम ६.३० से एक दिवसीय वेबीनार के बारे में बताया जिसमें निवेदिता क डोवाल जी की उपस्तिथि रहेगी।

 डॉ. किरण देवरस जी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा - आज के दिन ही पचास वर्ष पूर्व कन्याकुमारी में विवेकानंद जी की मूर्ति का शिलन्यास हुआ था l आप सभी को इस पावन अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं बधाईयां ।

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