उत्तिष्ठत! जाग्रत!! प्राप्यवरान्निबोधत!!! उठो, जागो और जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो, कही मत ठहरो। दौर्बल्य के मोहजाल से बाहर निकलो, कोई वास्तव में दुर्बल नहीं है। आत्मा अनंत, सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी है। खड़े हो जाओ, स्वयं को झकझोरो, अपने अन्दर व्याप्त ईश्वर का आवाहन करो। अपने इस ईश्वर रूप को समझो और अन्य प्रत्येक को समझाओ। स्वामी विवेकानन्द के इस शक्तिदायी सन्देश के अनुसार अपने सत्य स्वरूप पर चिंतन करने हेतु, अपने दैनंदिन तनावग्रस्त जीवन से समय निकालकर सम्पूर्ण देशभर से ९४ शिविरार्थी १६ फरवरी, २०२० को कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्दपुरम में पहुंचे। इस आध्यात्मिक शिविर का आयोजन १६ फरवरी, २०२० से २३ फरवरी, २०२० तक था। शिविर में ६० बहने और ३४ भाई थे। शिविर अंग्रेजी तथा हिंदी इन दो भाषाओं में हुआ। शिविरार्थी सम्पूर्ण भारतभर से आए थे। अरुणाचल प्रदेश से २१, बंगाल से ७, उत्तर प्रदेश से १, बिहार ३, मध्य प्रदेश ३, महाराष्ट्र २०, कर्नाटक ५, राजस्थान २४, गुजरात ८ तथा तमिलनाडु से २ शिविरार्थी रहे।
दिनांक १६ फरवरी को पंजीयन तथा भजन संध्या के पश्चात् रात्रि ८.१५ बजे परिचय सत्र हुआ जिसमे शिविर की विस्तृत जानकारी दी गयी तथा सब का आपस में परिचय हुआ। शिविर दिनचर्या के बारे में भी बताया गया। १७ फरवरी प्रातःकाल से शिविर दिनक्रम शुरू हुआ। प्रतिदिन सुबह ४.३० बजे जागरण के पश्चात् ५.१५ बजे सब शिविरार्थी पतंजलि कक्ष में एकत्रित होते थे। अल्पाहार का समय ७.३० बजे का था। ८.१५ बजे श्रम-संस्कार के सत्र में ग्रंथालय के सामने एकसाथ गणशः खड़े होकर गीत गाया जाता था और फिर सारे गण अपने अपने कार्य में लग जाते थे। सुबह १० से ११ और दोपहर ३.३० से ४.३० बौद्धिक सत्र होते थे। सम्पूर्ण शिविर में आध्यात्मिकता की संकल्पना, राष्ट्रभक्त संन्यासी स्वामी विवेकानन्द, माननीय एकनाथजी, विवेकानन्द शिला-स्मारक की कथा, श्रीमद् भगवद्गीता, कर्मयोग, भक्तियोग, आनंद-मीमांसा, विवेकानन्द केन्द्र – एक वैचारिक आन्दोलन, केन्द्र-प्रार्थना, विवेकानन्द केन्द्र की गतिविधियाँ तथा उद्देश्यपूर्ण जीवन इन विषयों पर हिन्दी तथा अंग्रेजी में व्याख्यान हुए। प्रतिदिन मंथन का समय था ११ से १२ बजे तक। उसके पश्चात् गीत और मन्त्र पठन का सत्र होता था। १२.३० से १ बजे तक प्राणायाम करने के पश्चात् सब प्रसाद कक्ष में भोजन के लिए इकठ्ठा होते थे। २.३० बजे मंथन-प्रस्तुतीकरण, ३ बजे चाय तथा ३.३० बजे द्वितीय बौद्धिक सत्र के पश्चात् योगाभ्यास के सत्र का आयोजन था। सायंकाल के शांत, प्रसन्न वातावरण में, निसर्ग के सान्निध्य में रहने का भी अवसर मिला। रात्रि भोजन के पश्चात् प्रेरणा से पुनरुत्थान के सत्र का सबने आनंद उठाया।
मंथन के सत्र में स्वामी विवेकानन्द के जीवन के प्रसंग, आध्यात्मिकता की संकल्पना, व्यवहार में देशभक्ति, सेवा के प्रकार, स्वामीजी का रामेश्वरम में दिया गया व्याख्यान आदि विषयों पर गणशः चर्चा हुई और विविध प्रकार से प्रस्तुतीकरण किया गया। योगाभ्यास में शिथिलीकरण व्यायाम, श्वसन व्यायाम, सूर्य नमस्कार, आसन, प्राणायाम, ओंकारध्यान तथा आवर्तिध्यान का अभ्यास हुआ। प्रेरणा से पुनरुत्थान में प्रान्तशः गीत/नृत्य प्रस्तुत किए गए। विविध खेलों का भी सब ने आनंद उठाया। साथ-साथ श्री रामकृष्ण परमहंस तथा शारदा देवी के दिव्य जीवन-प्रसंग भी बताये गए। शिविर के दौरान विवेकानन्द शिला-स्मारक, कन्याकुमारी देवी मंदिर, शिव मंदिर तथा विवेकानंदपुरम स्थित गणेश मंदिर, गंगोत्री, उत्तिष्ठत जाग्रत, रामायण दर्शन, भारतमाता सदनम तथा ग्रामोदय पार्क इन प्रदर्शनियों के दर्शन करने का अवसर मिला। शिविर के अंतिम दिन प्रातः सूर्योदय देखने के लिए सभी शिविरार्थी समुद्र किनारे पर गए। स्वामी विवेकानन्द मंडपम तथा माननीय एकनाथजी समाधी के भी दर्शन किए। शिविर के समापन समारोह में सब शिविरार्थियों को विवेकानन्द केन्द्र के उपाध्यक्ष माननीय बालकृष्णनजी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
यह शिविर सभी के लिए आनंदमय तथा शिक्षाप्रद रहा। शिविर के पश्चात् ३ शिविरार्थियों ने केन्द्र के पूर्णकालीन कार्यकर्ता बनने का और सभी ने अपने अपने स्थान पर पहुंचकर केन्द्र के गतिविधियों में सहभाग लेने का संकल्प लिया।
दिनांक १६ फरवरी को पंजीयन तथा भजन संध्या के पश्चात् रात्रि ८.१५ बजे परिचय सत्र हुआ जिसमे शिविर की विस्तृत जानकारी दी गयी तथा सब का आपस में परिचय हुआ। शिविर दिनचर्या के बारे में भी बताया गया। १७ फरवरी प्रातःकाल से शिविर दिनक्रम शुरू हुआ। प्रतिदिन सुबह ४.३० बजे जागरण के पश्चात् ५.१५ बजे सब शिविरार्थी पतंजलि कक्ष में एकत्रित होते थे। अल्पाहार का समय ७.३० बजे का था। ८.१५ बजे श्रम-संस्कार के सत्र में ग्रंथालय के सामने एकसाथ गणशः खड़े होकर गीत गाया जाता था और फिर सारे गण अपने अपने कार्य में लग जाते थे। सुबह १० से ११ और दोपहर ३.३० से ४.३० बौद्धिक सत्र होते थे। सम्पूर्ण शिविर में आध्यात्मिकता की संकल्पना, राष्ट्रभक्त संन्यासी स्वामी विवेकानन्द, माननीय एकनाथजी, विवेकानन्द शिला-स्मारक की कथा, श्रीमद् भगवद्गीता, कर्मयोग, भक्तियोग, आनंद-मीमांसा, विवेकानन्द केन्द्र – एक वैचारिक आन्दोलन, केन्द्र-प्रार्थना, विवेकानन्द केन्द्र की गतिविधियाँ तथा उद्देश्यपूर्ण जीवन इन विषयों पर हिन्दी तथा अंग्रेजी में व्याख्यान हुए। प्रतिदिन मंथन का समय था ११ से १२ बजे तक। उसके पश्चात् गीत और मन्त्र पठन का सत्र होता था। १२.३० से १ बजे तक प्राणायाम करने के पश्चात् सब प्रसाद कक्ष में भोजन के लिए इकठ्ठा होते थे। २.३० बजे मंथन-प्रस्तुतीकरण, ३ बजे चाय तथा ३.३० बजे द्वितीय बौद्धिक सत्र के पश्चात् योगाभ्यास के सत्र का आयोजन था। सायंकाल के शांत, प्रसन्न वातावरण में, निसर्ग के सान्निध्य में रहने का भी अवसर मिला। रात्रि भोजन के पश्चात् प्रेरणा से पुनरुत्थान के सत्र का सबने आनंद उठाया।
मंथन के सत्र में स्वामी विवेकानन्द के जीवन के प्रसंग, आध्यात्मिकता की संकल्पना, व्यवहार में देशभक्ति, सेवा के प्रकार, स्वामीजी का रामेश्वरम में दिया गया व्याख्यान आदि विषयों पर गणशः चर्चा हुई और विविध प्रकार से प्रस्तुतीकरण किया गया। योगाभ्यास में शिथिलीकरण व्यायाम, श्वसन व्यायाम, सूर्य नमस्कार, आसन, प्राणायाम, ओंकारध्यान तथा आवर्तिध्यान का अभ्यास हुआ। प्रेरणा से पुनरुत्थान में प्रान्तशः गीत/नृत्य प्रस्तुत किए गए। विविध खेलों का भी सब ने आनंद उठाया। साथ-साथ श्री रामकृष्ण परमहंस तथा शारदा देवी के दिव्य जीवन-प्रसंग भी बताये गए। शिविर के दौरान विवेकानन्द शिला-स्मारक, कन्याकुमारी देवी मंदिर, शिव मंदिर तथा विवेकानंदपुरम स्थित गणेश मंदिर, गंगोत्री, उत्तिष्ठत जाग्रत, रामायण दर्शन, भारतमाता सदनम तथा ग्रामोदय पार्क इन प्रदर्शनियों के दर्शन करने का अवसर मिला। शिविर के अंतिम दिन प्रातः सूर्योदय देखने के लिए सभी शिविरार्थी समुद्र किनारे पर गए। स्वामी विवेकानन्द मंडपम तथा माननीय एकनाथजी समाधी के भी दर्शन किए। शिविर के समापन समारोह में सब शिविरार्थियों को विवेकानन्द केन्द्र के उपाध्यक्ष माननीय बालकृष्णनजी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
यह शिविर सभी के लिए आनंदमय तथा शिक्षाप्रद रहा। शिविर के पश्चात् ३ शिविरार्थियों ने केन्द्र के पूर्णकालीन कार्यकर्ता बनने का और सभी ने अपने अपने स्थान पर पहुंचकर केन्द्र के गतिविधियों में सहभाग लेने का संकल्प लिया।
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